Friday 6 February 2015


                           गाँव मुझे तेरी बहुत याद आती है
गाँव मुझे तेरी बहुत याद आती है..
तेरी वो मिट्टी की महक और चिड़ियाओं की चहक
तेरे वो ऊँचे ऊँचे रेत के टीले जो कभी ना हो गीले
तेरे पेड़ो की वो ठंडी और गहरी छाया
जिनके नीचे बैठकर तृप्त हो जाये काया
वो ढ़लते सूरज की लालिमा अमावस्या रात की कालिमा
वो कहानी सुनाती दादीमा वो खाना बनाती बहन सालिमा
इन सब की रह रहकर यादे आती है
गाँव मुझे तेरी बहुत याद आती है।
वो बरगद के पेड़ पर रस्सी से बना झूला
याद आता है तो ख़ुशी से नही समता मै फुला
आम खाने उन पेड़ो पर छुप छुप के चढ़ना
और माली को आता देख वहा से भगना
भगते भगते गिर के चोट खाना
फिर बाबूजी का डाटना और माँ का समझाना
ये यादे मुझे बहुत सताती है
गाँव मुझे तेरी बहुत याद आती है
वो मोटी मोटी मक्के की रोटियों पे पड़ी सरसों की साग
जितना खाता हूँ इनको मै उतनी ही बढ़ जाती है लाग
वो तेरे यहाँ बनता दाल बाटी चूरमा
खाकर के उसे जो बन जाये शूरमा
तेरे खाने का तो मैं हमेशा रहूँगा कायल
याद आता है जब भी मुझे कर देता है घायल
नाम लेते ही इन पकवानो का मुझे भूख लग जाती है
गाँव मुझे तेरी बहुत याद आती है
शाम होते ही जंगल से गायों का चरकर भागते हुए आना
और भाग भागकर कच्चे रास्तो पर मिट्टी और धूल उड़ाना
सूर्यास्त होते ही गोधूलि वेळा का आ जाना
और बाड़ो में बंधे सभी बछड़ो का एक साथ रंभाना
किसान का आकर के उन्हें खोलना,खुलते ही माँ के थन से जाके चिपक जाना
और ऐसे जताना जैसे उसे मिल गया हो कुबेर का खजाना
फिर किसान का गाय से दूध निकालना और चाय बनाकर घर आये मेहमानो को बड़े प्यार से पिलाना
वैसी प्यार भरी चाय की चुस्की यहाँ दिल्ली में नही मिल पाती है
गाँव मुझे तेरी बहुत याद आती है
वो मिट्टी और घास फुस से बना खपरेल का घर
जिसे किसी किसान ने बनाया बहुत मेहनत कर
उस कच्चे घर में बारिश का पानी चू चू के टपकना
जिसे देख चारपाई पे लेते किसान का आँखे झपकना
पोष की सर्दी में आई ठंडी हवा उसके ख़ून को जमा जाती है
और ज्येष्ठ में आई पुरवाई उसके अरमानो को ठंडा कर जाती है
गाँव मुझे तेरी बहुत याद आती है
वो लम्बे चौड़े आदमियों के सिर पर बंधा साफा
जिन्हें देखकर लगता है होगा इनमे बहुत आपा
उन्हें कोई मतलब नही होता दुनियादारी से
वो तो बस जीते और मरते है ख़ुद्दारी से
एक दूसरे से मिलकर और हँसते हँसते जीते है
भले ही जहर कितना हो जिन्दगी में उसे घुट घुट के पीते है
उनकी बस एक ही कमजोरी है वो है कर्ज
जिसका शायद अभी तक नही है कोई मर्ज
कब उबरेंगे ये कर्ज से मुझे ये चिन्ता खाती है
गाँव मुझे तेरी बहुत याद आती है
मै सिंटू बन्ना परदेश में रहकर गांव को नही भूल पाउँगा
रो रोके रोज खुद को दिलासा देता हूँ की एक दिन आयेगा जब मै वापस अपने गाँव जाऊँगा।