Friday 9 May 2014

"धरती माता किसने राखी लाज तेरे सम्मान की"
धरती माता किसने राखी लाज तेरे सम्मान की ।
अलबेलों ने लिखी खडग से गाथाएं बलिदान की।।
हाँ गाथाएं बलिदान की।।
काबुल के तूफानों से जब मानस था थर्राया।
गजनी की आंधी से जाकर भीमदेव था टकराया।।
देख खानवा यहाँ चढ़ी थी राजपूत की त्योरियां।
मतवालों की शमशीरों से निकली थी चिंगारियां।।
यहाँ कहानी गूँज रही सांगा के समर प्रयाण की।
अलबेलों ने लिखी खडग से गाथाएं बलिदान की।।
देखो इस चित्तोड दुर्ग का हर पत्थर गौरव वाला।
यहाँ चढाई कुल देवी पर शत-शत मुंडो की माला।।
महलों में जौहर धधका हर राजपूत परवाना था।
हर हर महादेव नारों से अवनि अम्बर गूंजा था।।
यहाँ कथाएं गूंज रही कण कण में गौरव गान की।
अलबेलों ने लिखी खडग से गाथाएं बलिदान की।।
यही सीकरी वह पानीपत यही वही हल्दीघाटी।
वीर बांकुरों के शोणित से तृप्त हुई जिसकी माटी।।
हाल बता बुन्देल धरा तेरे उन वीर सपूतों का।
केशरिया कर निकल चुके थे मान बचाने माता का।
भूल गए तो याद करो उस पृथ्वीराज महान की।
अलबेलों ने लिखी खडग से गाथाएं बलिदान की।।
आन-बान हित कई बांकुरे आजीवन थे जहां लड़े।
यवन सैन्य के झंझावत से पर्वत बनकर यहीं अड़े।।
क्षिप्रा झेलम बोल जरा क्यों लाल हुआ तेरा पानी।
महाकाल से यहाँ जूझने दुर्गा की थी भृकुटी तनी।।
तेरी ही वेदी पर माता चिता जाली अरमान की।
अलबेलों ने लिखी खडग से गाथाएं बलिदान की।।
महाराणा सा सपूत पाकर धन्य हुई यह वसुंधरा।
जैमल फत्ता जैता कुम्पा झाला की यह परंपरा।।
जिन्दा है तो देख जरा जालोर गढ़ और उन्टाला।
तारागढ़ और रनतभंवर में लगा शहीदों का मेला।
आओ फिर से करे प्रतिष्ठा उस पावन प्रस्थान की।
अलबेलों ने लिखी खडग से गाथाएं बलिदान की।।
तडफ रहे हैं परवाने उसी शमा पर चढ़ने को।
आग उठी है रग रग में फिर से बदला ले लेने को।।
भभक रहे हैं अब अंगारे प्रतिहिंसा के झोंको से।
भीख मांगता महांकाल निर्वासित राजकुमारों से।।
जगो यहाँ पर जग्देवों की लगी है बाजी जान की।
अलबेलों ने लिखी खडग से गाथाएं बलिदान की।।