Thursday 26 December 2013

क्षत्रिय वो है जो क्षात्र धर्म को आज तक भूला नहिँ है॥

गैरो की गूलामी को आज तक जिसने कबूला नहीँ है॥



जिसकी रगो मे राम का खून आज भी जिन्दा हो॥


भारत माता के अपमान पे जो आज भी शर्मिन्दा हो॥



जोहर की ज्वाला आज भी उसके सीने मे धधकती हो॥


शौर्य और वीरता की खुशबु आज भी उसकी आँखो मे महकती हो॥



शत्रू की ललकार सुन के जिसके सीने मे बिजलियाँ कङकती हो॥


तलवार को देख के आज भी उसकी भूजायेँ फङकती हो॥



चरीत्र उसका हिमालय जितना विशाल हो॥


आदर्श मे पुरी दुनीयाँ के लिये मिशाल हो॥



पाप और अधर्म को जो सह नहीँ सकता॥


हरिश्चन्द्र का वँशज है क्षत्रिय असत्य बोल कह नही सकता॥



दानवीर एसा की निज प्राणो के दान से भी पिछे नहिँ हटेगा॥


शरणागत की रक्षा मे शरणागत से पहले खुद कटेगा॥



हरिनारायण क्षत्रिय धर्म पे चलने वाला कभी झुक नहीँ सकता ॥


हजारो आँधिया आ जाये सच्चा क्षत्रिय कभी रुक नहीँ सकता ॥







जय क्षात्र धर्म॥


जय क्षत्रिय॥

Monday 23 December 2013

#लड़का हैंडसम होना चाहिए, ‘स्मार्ट’ तो फोन
भी होते हैं।
#फोन तो आईफोन होना चाहिए, ‘S1, S2...S4’
तो ट्रेन के डिब्बे भी होते हैं।
#इंसान का दिल बड़ा होना चाहिए, ‘छोटा’ तो भीम
भी है।
#व्यक्ति को समझदार होना चाहिए, ‘सेंसटिव’
तो टूथपेस्ट भी है।
#टीचर ज्यादा नंबर देने वाला होना चाहिए, ‘अंडा’
तो मुर्गी भी देती है।
#युवा राष्ट्रवादी होना चाहिए, ‘कूल’ तो नवरत्न तेल
भी है।
#विकास गुजरात जैसा होना चाहिए, ‘निर्माण’
तो शौचालय का भी होता है।
#राष्ट्रपति कलाम होना चाहिए, ‘मुखर्जी’
तो रानी भी है।
#कैप्टन दादा जैसा होना चाहिए, ‘एमएस’ तो ऑफिस
भी है।
#बाथरुम में हेयर ड्रायर होना चाहिए, ‘टॉवल’
तो श्रीसंत के पास भी है।
#लड़की में अक्ल होनी चाहिए, ‘सूरत’ तो गुजरात में
भी है।
#मोबाइल जनरल मोड पर होना चाहिए, ‘साइलेंट’
तो मनमोहन भी हैं।
#सेब मीठा होना चाहिए, ‘लाल’ तो आडवाणी भी हैं।
#लड़का द्रविड जैसा होना चाहिए, ‘राहुल’
तो गांधी भी है।
#घूमना तो हिल स्टेशन पर चाहिए, ‘गोवा’ तो पान
मसाला भी है।
#कसाब को गोली मारनी चाहिए, ‘हैंग’ तो फोन
भी होता है।
#दवाई ठीक करने के लिए होना चाहिए, ‘टेबलेट’
तो सैमसंग का भी है।
#रिप्लाय ढंग का होना चाहिए, ‘हम्म’ को भैंस
भी करती है।

धिन है वो माता जिसने राणा जेसे शेर को दुध पिलाया था।

            काट काट दूश्मन को जिसने क्षात्र धर्म को बचाया था।

धिन है हल्दीघाटी की वो माटी जिसका तिलक राणा ने लगाया था।


    धिन है राणा की वो छाती जिसने बेरी से मिले भाई को गले लगाया था।



धिन है चितौङ का वो गढ जँहा राणा ने केशरीया लहराया था।


        धिन धिन है वो चेतक जिसपे चढ के राणा ने घमासान मचाया था।

धिन है राणा का वो भाला जिसै राणा ने रण मे सम्भाला था।


                   धिन है वो तलवार जिसको राणा ने म्यान से निकाला था।



राणा की पाग की महीमा मे कर नहि सकता ।


      ईतनी ऊँची शान है उस पाग की मेरे शब्दो से मे भर नही सकता।

उस पाग की महीमा मे क्या करु,जिसे झुकाने को अकबर सारे जतन कर 


गया।

          झुका तो वो नही सका, पर ईसे वो अकबर नमन कर गया। 


धिन धिन है भारत की ये भुमी जँहा राणा ने अवतार लिया।


नारायण नमन करे राणा को,जिसने क्षात्र धर्म का जयकार किया। 




॥जय क्षात्र धर्म॥

Sunday 15 December 2013

                                                            

                                                               "इतिहास ना बदल जाए" 

आज फिर सिंटू बन्ना के शब्द अपनों को दर्द न दे जाए,
आज फिर कहीं लिखते- लिखते रोना न आ जाए ।
जरा वक्त निकाल सोचो कहाँ थे हम और अब कहाँ आ गये है,
डर रहा हूँ यह सोच कर की कहीं अस्तित्व हमारा भी खो न जाए ।।

कुछ चन्द लोगों को मान लिया समाज का ठेकेदार हमने ,
कहीं उन ठेकेदारों के हाथों समाज नीलाम न हो जाए।
नही लेता इन अपनों के नाम सरेआम इस डर से ,
की कही नाम उनका बदनाम ना हो जाए ।।

कई दशक हो गये सहन करते हुए अब तो उठो ,
कही अत्याचार सहना हमारा स्वभाव न बन जाए।
कर रहा हूँ कोशिश अपना अतीत वापस लाने की ,
कहीं इस कोशिस मे नाम मेरा विरोधियों मे ना जुड़ जाए ।।

सर कटाये है क्षत्रियों ने जोहर किये है क्षत्राणीयों ने,अब तो उठो ,
कही लोगों को खून की पवित्रता पर शक होने ना लग जाए ।
मर गये अपने पूर्वज क्षत्रियता निभाते निभाते ,
कोशिश करो उनके प्रयास कागजों मे सिमट कर ना रह जाए ।।

मांगता हूँ दुआ जब भी देखता हूँ वर्त्तमान स्थिति को ,
की कहीं शुद्र सा हमारा भविष्य ना हो जाए ।
कर रहा हूँ इंतजार अपनों के बदलने का,
कही इस इंतजार मे जिंदगी तमाम ना हो जाए ।।

डर रहा हूँ वर्तमान चाल चलन को देख कर ।
की कही संस्कृति हमारी भी लुप्त ना हो जाए ।
चिन्तित होता हूँ जब भी सोचता हूँ अकेले में ,
की कही भविष्य मे हम फिर से गुलाम ना हो जाए ।।

यह लोकतन्त्र है यहाँ सरकारे बदलेंगी तख्त बदलेंगे ,
हम भी कही इन लोकतान्त्रिक पार्टियों के दास ना बन जाएँ ,
सत्ता मे बने रहना है तो अपनी एकता की ताकत दिखाओ ।
वरना कहीं जोधा-अकबर की तरह संपूर्ण इतिहास ना बदल जाए ।।

Saturday 30 November 2013

अब भी क्षत्रिय तुम उठते नहीं फिर आखिर उठके करोगे क्या ?
वीरों का जीना जीते नहीं बकरों की मौत मरोगे क्या ?
जौहर की ज्वाला धधकेगी पानी में डूब मरोगे क्या ?

युग पलटा है प्रणाली पलटी रोना पलटा हुंकारों में
पानी जो गया पातालों में अब पलटेगा तलवारों में
पलटे दिन की रणभेरी है उसको अनसुनी करोगे क्या ?

युग युग से हुंके उठती है चितौड़ दुर्ग दीवारों से
हिन्दू क्या रोते पृथ्वी रोती आंसू पड़ते तारों से
वे केसरिया बन जूझे थे तुम पीठ दिखा भागोगे क्या ?

शक्ति शौर्य जो पास नहीं तो विजय नहीं जयकारों में
निर्बल की नैया डगमग करती दोष कहाँ पतवारों में
अब बाहूबल संचित करने भी धीरे कदम रखोगे क्या ?

शिवी ने शरणागत खग को बचाने मांस निज काट दे दिया था। 
गौरक्षा हित तेरा पूर्वज स्वयं समर्पित हो गया था। 
अब मरने की बेला आएगी आँखे बंद करोगे क्या ?

धर्म भ्रष्ट कर्तव्यहीन बन जग में भी जिवोगे क्या ?
अपने हाथों से घर जलवा कर रस्ते पर लौटोगे क्या ?
रे प्राण गए तो देह नाश से कभी बचा पावोगे क्या ?

गीदड धमकी से जो ङर जाये, वो राजपूत की संतान नहीं,
हम शेर हैं दुनिया के, शायद तुम्हें पहचान नहीं

कान खोल कर सुन ले दुश्मन, चेहरे का खोल बदल देंगे,
इतिहास की क्या हस्ती है, पूरा भूगोल बदलदेंगे ll"

राजपुत हुं राजपुताना चाहता हूं,
फिर से सबको एक बनाना चाहता हूं।

राज आपना वापस आये या ना आये,
लेकिन अपनी इज्जत वापस लाना चाहता हूं।।

ऐक बनो , नेक बनो .. ..
जुड गए तो सिंह (शेर) भी घबराएगा...

टुट गए तो गीदड भी सतायेगा।।

Friday 29 November 2013

पारो ने कहा - शराब छोड़ दो,
पवार ने कहा - टमाटर खाना छोड़ दो,
चीनी खाना छोड़ दो, प्याज खाना छोड़ दो,
शीला ने कहा - बिजली जलाना छोड़ दो,
चिदंबरम ने कहा -सोना खरीदना छोड़ दो,
केजरीवाल ने कहा - बिल देना छोड़ दो,
मनमोहन ने कहा - या तो मुझे चोर कहना छोड़
दो या मुझे मंगल गृह पर छोड़ दो,
सोनिया ने कहा - सीने में दर्द है....कोई एम्स तक
छोड़ दो,
राहुल ने कहा - में कन्फ़्यूज़्ड हूँ अकेला छोड़ दो,
अध्यादेश फाड़ दो,
मोइली ने कहा - पेट्रोल भरवाना छोड़ दो,
शिन्दे ने कहा - मुसलमान आतंकियों को छोड़ दो,
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एक काम करो....तुम सारे मिलकर भारत छोड़ दो,
हो जायेगा भारत निर्माण!!
कोंगेस है एक बीमारी...जो फैला रही है
महामारी...जिसके लक्षण है घोटाले और बलात्कार

Sunday 27 October 2013

बता राजस्थान "बाँ " थारी रीत कठै।
सीस कटियोड़ा धड़ लड़ रहया एड़ा पूत कठै।
गायां खातर गाँव गाँव मे बलिदानी जुंझार कठै।
फेरां सूं अधबीच मे उठतों "बो" पाबू राठौड़ कठै ।
कठै है अब "बा" भामाशाह साहूकार री रीत।
सुख दुख मे सब सागै रेवता बा मिनखा री प्रीत कठै।
मोठ बाजरा रो रोट ओर फोफलिया रो साग कठै।
मारवाड़ सू मेवाड़ तक गूंजता "बी" मीरां रा गीत कठै।
बता राजस्थान "बाँ " थारी रीत कठै।









पिंजरा लोहे का हो या सोने का क्या फर्क पड़ता है?
कांग्रेस लाओ या बीजेपी लाओ कोई फर्क नही पड़ता।
जब तक आप को आजादी का मतलब समझ ना आये तब तक सिर्फ पिंजरा बदलते रहने का क्या फायदा।
आजादी का मतलब सही मायने में समझो और देश बचाओ ।
तभी जा कर हमारे समाज और देश का उद्धार हो सकता है।

तूफान में ताश का घर नहीं बनता, रोने से बिगड़ा मुकद्दर नहीं बनता ।
हौसला रखो दुनिया जितने का ,
एक हार से कोई फ़क़ीर और एक जीत से कोई सिकंदर नहीं बनता ।।






!!"राजपूत है हम"!!
कहते तो हम सब है की राजपूत है हम ,
मानवता की लाज बचाने वाले हिन्द के 
वो सपूत है हम ।

पर वो क्षत्रियोचित सँस्कार अब कँहा है ।
वो राणा और शिवाजी की तलवार अब कँहा है॥

बेटे तो हम उन मर्यादापुरुषोत्तम राम
के वँश के है ।
और राणा शिवाजी और दुर्गा दास जी के
अँश के है ॥

तो फिर राम का मर्यादित जीवन अब कँहा है ।
राणा और दुर्गादास जी के जैसी लगन अब कँहा हैँ ॥

दानी कर्ण और राजा शिवी का नाम हम लेते है ।
भागिरथ और सत्यवादी हरिश्चन्द्र की साख हम
दूनियाँ को देते है॥

तो फिर भागिरथ जैसा तप अब कँहा है ।
झुकाया था भगवान को सत्य के आगे वो
सत्य का अवलम्ब अब कँहा है ।

हमेँ गर्व है की हम शर कटने पे भी लङते थे ।
खेल खेल मेँ ही हमारे वीर जँगली शेरो से अङते थे।

जिस सत के सहारे धङ लङते थे वो सत
अब कँहा है ।
आज वो हजार हाथीयोँ का अथाह बल
अब कँहा है।

सतयुग, त्रेता और द्वापर तो क्षत्रियोँ के स्वर्ण युग रहै ।
कलयुग मे भी आज तक क्षत्रिय श्रेष्ठ रहे चाहै
उन्होने कठिन कष्ठ सहै ॥

पर सोचना तो हमे है जो क्षत्रिय धर्म
और सँस्कार भूल रहै ।
देख रहा हुँ आज शेर भी गीदङो की
गुलामी कबूल रहै है

अब तो ईस राख मे छुपे अँगारे
को जगा लो साथियोँ ।
जिस धर्म ने महान बनाया हमे
उसे अपनालो साथियोँ ।
जय क्षत्रिय ॥
जय क्षात्र धर्म ॥














क्षत्रिय हुँ, रुक नहीँ सकता ।
क्या है ये तुफान, इन्द्र का वज्र
आ जाये तो भी झुक नहीँ सकता ॥

मत करो झुठी कल्पना की मे डर जाउँगा ।
श्री राम का वँशज हुँ एक रावण तो क्या, 
हजारो का सामना भी कर जाउँगा ॥

थोङा सा सिलसिला रुक क्या गया बलिदान का ।
पुरा का पुरा कुटुम्ब उठ खङा हो गया शैतान का॥

अरे हम वो है जिन्होने शरणागत
कबुतर को भी बचाया था ।
और कुँभकरण जैसे राक्षश को भी
अपने बाणो पे नचाया था॥

माता सीता के सत के तिनके
ने रावण को डरा दिया ।
और द्रोपदी के तप ने दुश्शासन
को भरी सभा मे हरा दिया ॥

अरे हम आज भी वो ही छ्त्रपति
शिवाजी के शेर है ।
बस भूल गये है अपने क्षात्र धर्म को
बस उसे अपनाने की ही देर हैँ ॥

Saturday 26 October 2013

कठे गया बे राजपुत कठे गयी बा रजपूताई।
शिर कटता अर धङ लङता एसा हा म्हारा भाई।
आज समाज पर सँकट आयो तो म्हाने याद आई।
पन्ना धाय ओर राणी झाँसी री लक्ष्मी बाई।
समय समय की बात है और समय समय का खेल।
सँसकार अपने भूले हम और रहा ना आपस मे मेल।
जिनको हमने अपना माना और जिनपे अपनी जान लूटाई।
वो हि हमको आँख दिखाते करते जग मे हमारी हँसाई।
हिमालय की सी शान हमारी ,दुनिया ने ईसको माना है।
हजारे क्षत्राणीया जोहर मे कुदी,सतियो के सत को हमने जाना है।
क्षत्रिय और राजपूत कहलाने वालो आज हमे धिक्कार है।
दासी को जोधा बता जग को हँसाते देखो आज यँहा मक्कार है।
आज हमे क्षत्रिय रँग मे आके क्षत्रत्वबताना होगा।
बन्द कर दो झुठी कहानी वरना बहूत पछताना होगा।
आज हमे तलवार की नही साथ रहने की जरुरत है।
एक हो जाओ मेरे राजपूत भाईयो ये ही अब शुभ मुहरर्त है॥

Friday 25 October 2013

    
                                             गीदड़ धमकी से जो ड़र जाये ,                                                     वो राजपुत की संतान नही ।                                             हम शेर है दुनिया के .                                                      शायद तुम्हेँ पहचान नही ।                                            कान खोलकर सुन लो दुशमनो,                                                       चेहरे का खोल बदल देँगे ।                                            इतिहास की क्या हस्ति है ,                                                         पुरा भूगोल बदल देँगे ।

Wednesday 23 October 2013

नई दिल्ली के बारे में रोचक तथ्य 
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1. 1947 में जब भारत को स्वतंत्रता मिली तो “नई दिल्ली” (New Delhi) को पूर्ण स्वतंत्रता न देकर सीमित स्वतंत्रता दी गई थी।
2. 1956 में दिल्ली केन्द्रशासित प्रदेश बना।
3. नई दिल्ली का नियन्त्रण “नई दिल्ली म्युनिसिपल काउंसिल” के द्वारा किया जाता है जबकि शेष दिल्ली का नियन्त्रण “म्युनिसिपल कार्पोरेशन, दिल्ली” के द्वारा किया जाता है।
4. दिल्ली का कुतुब मीनार प्रस्तर निर्मित संसार की सबसे बड़ी मीनार है।
5. दिल्ली में स्थित खारी बावली एशिया का सबसे बड़ा मसालों (spice) का थोक बाजार है।
6. दिसम्बर 1911 में जब अंग्रेजों ने अपनी राजधानी को कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) से दिल्ली स्थानान्तरित किया तो उन्होंने दिल्ली से लगा हुआ “नई दिल्ली” (New Delhi) नामक एक नया शहर बनाने का निश्चय किया। “नई दिल्ली” नामक इस नये शहर बनना 1931 में पूर्ण हुआ और इसी कारण से पहले से बसा हुआ शहर दिल्ली के स्थान पर “पुरानी दिल्ली” कहलाने लगा।
जंग खाई तलवार से युद्ध नही लड़े जाते,
लंगडे घोड़े पे दाव नही लगाये जाते,
वीर तो लाखों होते है पर सभी महाराणा प्रताप नही होते ,
पूत तो होते है धरती पे सभी... पर सभी “राजपूत” नही होते..!!

Wednesday 13 February 2013


१३०२ इश्वी में मेवाड़ के राजसिंहासन पर रावल रतन सिंह आरूढ़ हुए. उनकी रानियों में एक थी पद्मिनी जो श्री लंका के राजवंश की राजकुँवरी थी.
रानी पद्मिनी का अनिन्द्य सौन्दर्य यायावर गायकों (चारण/भाट/कवियों) के गीतों का विषय बन गया था.
दिल्ली के तात्कालिक सुल्तान अल्ला-उ-द्दीन खिलज़ी ने पद्मिनी के अप्रतिम सौन्दर्य का वर्णन सुना और वह पिपासु हो गया उस सुंदरी को अपने हरम में शामिल करने के लिए. अल्ला-उ-द्दीन ने चित्तौड़ (मेवाड़ की राजधानी) की ओर कूच किया अपनी अत्याधुनिक हथियारों से लेश सेना के साथ. मकसद था चित्तौड़ पर चढ़ाई कर उसे जीतना और रानी पद्मिनी को हासिल करना. ज़ालिम सुलतान बढा जा रहा था, चित्तौड़गढ़ के नज़दीक आये जा रहा था. उसने चित्तौड़गढ़ में अपने दूत को इस पैगाम के साथ भेजा कि अगर उसको रानी पद्मिनी को सुपुर्द कर दिया जाये तो वह मेवाड़ पर आक्रमण नहीं करेगा. रणबाँकुरे राजपूतों के लिए यह सन्देश बहुत शर्मनाक था. उनकी बहादुरी कितनी ही उच्चस्तरीय क्यों ना हो, उनके हौसले कितने ही बुलंद क्यों ना हो, सुलतान की फौजी ताक़त उनसे कहीं ज्यादा थी. रणथम्भोर के किले को सुलतान हाल ही में फतह कर लिया था ऐसे में बहुत ही गहरे सोच का विषय हो गया था सुल्तान का यह घृणित प्रस्ताव, जो सुल्तान की कामुकता और दुष्टता का प्रतीक था. कैसे मानी ज सकती थी यह शर्मनाक शर्त. नारी के प्रति एक कामुक नराधम का यह रवैय्या क्षत्रियों के खून खौला देने के लिए काफी था.
रतन सिंह जी ने सभी सरदारों से मंत्रणा की, कैसे सामना किया जाय इस नीच लुटेरे का जो बादशाह के जामे में लिपटा हुआ था. कोई आसान रास्ता नहीं सूझ रहा था. मरने मारने का विकल्प तो अंतिम था. क्यों ना कोई चतुराईपूर्ण राजनीतिक कूटनीतिक समाधान समस्या का निकाला जाय ? रानी पद्मिनी न केवल अनुपम सौन्दर्य की स्वामिनी थी, वह एक बुद्धिमता नारी भी थी. उसने अपने विवेक से स्थिति पर गौर किया और एक संभावित हल समस्या का सुझाया.
अल्ला-उ-द्दीन को जवाब भेजा गया कि वह अकेला निरस्त्र गढ़ (किले) में प्रवेश कर सकता है, बिना किसी को साथ लिए, राजपूतों का वचन है कि उसे किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाया जायेगा….हाँ वह केवल रानी पद्मिनी को देख सकता है..बस. उसके पश्चात् उसे चले जाना होगा चित्तौड़ को छोड़ कर…. जहाँ कहीं भी.
उम्मीद कम थी कि इस प्रस्ताव को सुल्तान मानेगा. किन्तु आश्चर्य हुआ जब दिल्ली के आका ने इस बात को मान लिया. निश्चित दिन को अल्ला-उ-द्दीन पूर्व के चढ़ाईदार मार्ग से किले के मुख्य दरवाज़े तक चढ़ा, और उसके बाद पूर्व दिशा में स्थित सूरजपोल तक पहुंचा. अपने वादे के मुताबिक वह नितान्त अकेला और निरस्त्र था. पद्मिनी के पति रावल रतन सिंह ने महल तक उसकी अगवानी की.
महल के उपरी मंजिल पर स्थित एक कक्ष कि पिछली दीवार पर एक दर्पण लगाया गया, जिसके ठीक सामने एक दूसरे कक्ष की खिड़की खुल रही थी…उस खिड़की के पीछे झील में स्थित एक मंडपनुमा महल था जिसे रानी अपने ग्रीष्म विश्राम के लिए उपयोग करती थी. रानी मंडपनुमा महल में थी जिसका बिम्ब खिडकियों से होकर उस दर्पण में पड़ रहा था अल्लाउद्दीन को कहा गया कि दर्पण में झांके. हक्केबक्के सुलतान ने आईने की जानिब अपनी नज़र की और उसमें रानी का अक्स उसे दिख गया …तकनीकी तौर पर.उसे रानी साहिबा को दिखा दिया गया था….
सुल्तान को एहसास हो गया कि उसके साथ चालबाजी की गयी है, …किन्तु बोल भी नहीं पा रहा था, मेवाड़ नरेश ने रानी के दर्शन कराने का अपना वादा जो पूरा किया था…… और उस पर वह नितान्त अकेला और निरस्त्र भी था. परिस्थितियां असमान्य थी, किन्तु एक राजपूत मेजबान की गरिमा को अपनाते हुए,दुश्मन अल्लाउद्दीन को ससम्मान वापस पहुँचाने मुख्य द्वार तक स्वयं रावल रतन सिंह जी गये थे …..अल्लाउद्दीन ने तो पहले से ही धोखे की योजना बना रखी थी .उसके सिपाही दरवाज़े के बाहर छिपे हुए थे….दरवाज़ा खुला…….रावल साहब को जकड लिया गया और उन्हें पकड़ कर शत्रु सेना के खेमे में कैद कर दिया गया. रावल रतन सिंह दुश्मन की कैद में थे. अल्लाउद्दीन ने फिर से पैगाम भेजा गढ़ में कि राणाजी को वापस गढ़ में सुपुर्द कर दिया जायेगा, अगर रानी पद्मिनी को उसे सौंप दिया जाय. चतुर रानी ने काकोसा गोरा और उनके १२ वर्षीय भतीजे बादल से मशविरा किया और एक चातुर्यपूर्ण योजना राणाजी को मुक्त करने के लिए तैयार की.
अल्लाउद्दीन को सन्देश भेजा गया कि अगले दिन सुबह रानी पद्मिनी उसकी खिदमत में हाज़िर हो जाएगी, दिल्ली में चूँकि उसकी देखभाल के लिए उसकी खास दसियों की ज़रुरत भी होगी, उन्हें भी वह अपने साथ लिवा लाएगी. प्रमुदित अल्लाउद्दीन सारी रात्रि सो न सका…कब रानी पद्मिनी आये उसके हुज़ूर में, कब वह विजेता की तरह उसे भी जीते…..कल्पना करता रहा रात भर पद्मिनी के सुन्दर तन की….प्रभात बेला में उसने देखा कि एक जुलुस सा सात सौ बंद पालकियों का चला आ रहा है. खिलज़ी अपनी जीत पर इतरा रहा था. खिलज़ी ने सोचा था कि ज्योंही पद्मिनी उसकी गिरफ् त में आ जाएगी, रावल रतन सिंह का वध कर दिया जायेगा…और चित्तौड़ पर हमला कर उस पर कब्ज़ा कर लिया जायेगा. कुटिल हमलावर इस से ज्यादा सोच भी क्या सकता था. खिलज़ी के खेमे में इस अनूठे जुलूस ने प्रवेश किया……और तुरंत अस्तव्यस्तता का माहौल बन गया… पालकियों से नहीं उतरी थी अनिन्द्य सुंदरी रानी पद्मिनी और उसकी दासियों का झुण्ड…… बल्कि पालकियों से कूद पड़े थे हथियारों से लेश रणबांकुरे राजपूत योद्धा ….जो अपनी जान पर खेल कर अपने राजा को छुड़ा लेने का ज़ज्बा लिए हुए थे. गोरा और बादल भी इन में सम्मिलित थे. मुसलमानों ने तुरत अपने सुल्तान को सुरक्षा घेरे में लिया. रतन सिंह जी को उनके आदमियों ने खोज निकाला और सुरक्षा के साथ किले में वापस ले गये. घमासान युद्ध हुआ, जहाँ दया करुणा को कोई स्थान नहीं था. मेवाड़ी और मुसलमान दोनों ही रण-खेत रहे. मैदान इंसानी लाल खून से सुर्ख हो गया था. शहीदों में गोरा और बादल भी थे, जिन्होंने मेवाड़ के भगवा ध्वज की रक्षा के लिए अपनी आहुति दे दी थी.
अल्लाउद्दीन की खूब मिटटी पलीद हुई. खिसियाता, क्रोध में आग बबूला होता हुआ, लौमड़ी सा चालाक और कुटिल सुल्तान दिल्ली को लौट गया. उसे चैन कहाँ था, जुगुप्सा का दावानल उसे लगातार जलाए जा रहा था. एक औरत ने उस अधिपति को अपने चातुर्य और शौर्य से मुंह के बल पटक गिराया था. उसका पुरुष चित्त उसे कैसे स्वीकार का सकता था….उसके अहंकार को करारी चोट लगी थी….मेवाड़ का राज्य उसकी आँख की किरकिरी बन गया था. कुछ महीनों के बाद वह फिर चढ़ बैठा था चित्तौडगढ़ पर, ज्यादा फौज और तैय्यारी के साथ. उसने चित्तौड़गढ़ के पास मैदान में अपना खेमा डाला. किले को घेर लिया गया……किसी का भी बाहर निकलना सम्भव नहीं था…दुश्मन कि फौज के सामने मेवाड़ के सिपाहियों की तादाद और ताक़त बहुत कम थी. थोड़े बहुत आक्रमण शत्रु सेना पर बहादुर राजपूत कर पाते थे लेकिन उनको कहा जा सकता था ऊंट के मुंह में जीरा. सुल्तान की फौजें वहां अपना पड़ाव डाले बैठी थी, इंतज़ार में. छः महीने बीत गये, किले में संगृहीत रसद ख़त्म होने को आई. अब एक ही चारा बचा था, “करो या मरो.” या “घुटने टेको.” आत्मसमर्पण या शत्रु के सामने घुटने टेक देना बहादुर राजपूतों के गौरव लिए अभिशाप तुल्य था,………
ऐसे में बस एक ही विकल्प बचा था झूझना…..युद्ध करना…..शत्रु का यथा संभव संहार करते हुए वीरगति को पाना. बहुत बड़ी विडंबना थी कि शत्रु के कोई नैतिक मूल्य नहीं थे. वे न केवल पुरुषों को मारते काटते, नारियों से बलात्कार करते और उन्हें भी मार डालते. यही चिंता समायी थी धर्म परायण शिशोदिया वंश के राजपूतों में. …….
और मेवाड़ियों ने एक ऐतिहासिक निर्णय लिया…..किले के बीच स्थित मैदान में लकड़ियों, नारियलों एवम् अन्य इंधनों का ढेर लगाया गया…..सारी स्त्रियों ने, रानी से दासी तक, अपने बच्चों के साथ गोमुख कुन्ड में विधिवत पवित्र स्नान किया….सजी हुई चित्ता को घी, तेल और धूप से सींचा गया….और पलीता लगाया गया. चित्ता से उठती लपटें आकाश को छू रही थी…… नारियां अपने श्रेष्ठतम वस्त्र-आभूषणों से सुसज्जित थी…..अपने पुरुषों को अश्रुपूरित विदाई दे रही थी….अंत्येष्टि के शोक गीत गाये जा रही थी. अफीम अथवा ऐसे ही किसी अन्य शामक औषधियों के प्रभाव से प्रशांत हुई, महिलाओं ने रानी पद्मावती के नेतृत्व में चित्ता कि ओर प्रस्थान किया…..और कूद पड़ी धधकती चित्ता में….अपने आत्मदाह के लिए….जौहर के लिए….देशभक्ति और गौरव के उस महान यज्ञ में अपनी पवित्र आहुति देने के लिए. जय एकलिंग, हर हर महादेव के उदघोषों से गगन गुंजरित हो उठा था. आत्माओं का परमात्मा से विलय हो रहा था.
अगस्त २५, १३०३ कि भोर थी, आत्मसंयमी दुखसुख को समान रूप से स्वीकार करने वाला भाव लिए, पुरुष खड़े थे उस हवन कुन्ड के निकट, कोमलता से भगवद गीता के श्लोकों का कोमल स्वर में पाठ करते हुए…..अपनी अंतिम श्रद्धा अर्पित करते हुए…. प्रतीक्षा में कि वह विशाल अग्नि उपशांत हो. पौ फट गयी…..सूरज कि लालिमा ताम्रवर्ण लिए आकाश में आच्छादित हुई…..पुरुषों ने केसरिया बागे पहन लिए….अपने अपने भाल पर जौहर की पवित्र भभूत से टीका किया….मुंह में प्रत्येक ने तुलसी का पता रखा….दुर्ग के द्वार खोल दिए गये.
जय एकलिंग….हर हर महादेव कि हुंकार लगते रणबांकुरे मेवाड़ी टूट पड़े शत्रु सेना पर……मरने मारने का ज़ज्बा था….आखरी दम तक अपनी तलवारों को शत्रु का रक्त पिलाया…और स्वयं लड़ते लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गये. अल्लाउद्दीन खिलज़ी की जीत उसकी हार थी, क्योंकि उसे रानी पद्मिनी का शरीर हासिल नहीं हुआ, मेवाड़ कि पगड़ी उसके कदमों में नहीं गिरी. चातुर्य और सौन्दर्य की स्वामिनी रानी पद्मिनी ने उसे एक बार और छल लिया था.

Saturday 9 February 2013


महाराणा प्रताप : वीरता के परिचायक



भारतभूमि सदैव से ही महापुरुषों और वीरों की भूमि रही है. यहां गांधी जैसे शांति के दूतों ने जन्म लिया है तो साथ ही ताकत और साहस के परिचायक महाराणा प्रताप, झांसी की रानी, भगतसिंह जैसे लोगों ने भी जन्म लिया है. यह धरती हमेशा से ही अपने वीर सपूतों पर गर्व करती रही है. ऐसे ही एक वीर सपूत थे महाराणा प्रताप. महाराणा प्रताप भारतीय इतिहास में वीरता और राष्ट्रीय स्वाभिमान के सूचक हैं. इतिहास में वीरता और दृढ प्रण के लिये हमेशा ही महाराणा प्रताप का नाम अमर रहा है.

maharana pratapमहाराणा प्रताप उदयपुर, मेवाड में सिसोदिया राजवंश के राजा थे. एक मान्यता के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्म – 9 मई, 1540, राजस्थान, कुम्भलगढ़ में हुआ था. राजस्थान के कुम्भलगढ़ में प्रताप का जन्म महाराणा उदयसिंह एवं माता राणी जीवत कंवर के घर हुआ था.

उन दिनों दिल्ली में सम्राट अकबर का राज्य था जो भारत के सभी राजा-महाराजाओं को अपने अधीन कर मुगल साम्राज्य का ध्वज फहराना चाहता था. मेवाड़ की भूमि को मुगल आधिपत्य से बचाने हेतु महाराणा प्रताप ने प्रतिज्ञा की थी कि जब तक मेवाड़ आजाद नहीं होगा, मैं महलों को छोड़ जंगलों में निवास करूंगा, स्वादिष्ट भोजन को त्याग कंदमूल फलों से ही पेट भरूंगा किन्तु, अकबर का अधिपत्य कभी स्वीकार नहीं करूंगा. 1576 में हल्दीघाटी में महाराणा प्रताप और अकबर के बीच ऐसा युद्ध हुआ जो पूरे विश्व के लिए आज भी एक मिसाल है. अभूतपूर्व वीरता और मेवाड़ी साहस के चलते मुगल सेना के दांत खट्टे कर दिए और सैकड़ों अकबर के सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया गया.

बालक प्रताप जितने वीर थे उतने ही पितृ भक्त भी थे. पिता राणा उदयसिंह अपने कनिष्ठ पुत्र जगमल को बहुत प्यार करते थे. इसी कारण वे उसे राज्य का उत्ताराधिकारी घोषित करना चाहते थे. महाराणा प्रताप ने पिता के इस निर्णय का तनिक भी विरोध नहीं किया. महाराणा चित्तौड़ छोड़कर वनवास चले गए. जंगल में घूमते घूमते महाराणा प्रताप ने काफी दुख झेले लेकिन पितृभक्ति की चाह में उन्होंने उफ तक नहीं किया. पैसे के अभाव में सेना के टूटते हुए मनोबल को पुनर्जीवित करने के लिए दानवीर भामाशाह ने अपना पूरा खजाना समर्पित कर दिया. तो भी, महाराणा प्रताप ने कहा कि सैन्य आवश्यकताओं के अलावा मुझे आपके खजाने की एक पाई भी नहीं चाहिए.

महाराणा प्रताप के पास उनका सबसे प्रिय घोड़ा “चेतक” था. हल्दी घाटी के युद्ध में बिना किसी सहायक के प्रताप अपने पराक्रमी चेतक पर सवार हो पहाड़ की ओर चल पड़ा. उसके पीछे दो मुग़ल सैनिक लगे हुए थे, परन्तु चेतक ने प्रताप को बचा लिया. रास्ते में एक पहाड़ी नाला बह रहा था. घायल चेतक फुर्ती से उसे लांघ गया परन्तु मुग़ल उसे पार न कर पाये. चेतक की बहादुरी की गाथाएं आज भी लोग सुनाते हैं.

सम्पूर्ण जीवन युद्ध करके और भयानक कठिनाइयों का सामना करके प्रताप ने जिस तरह से अपना जीवन व्यतीत किया उसकी प्रशंसा इस संसार से मिट न सकेगी.

Friday 8 February 2013


किला जहां सूरज ढलते ही जाग जाती हैं आत्‍माएं




पुराने किले, मौत, हादसों, अतीत और रूहों का अपना एक अलग ही सबंध और संयोग होता है। ऐसी कोई जगह जहां मौत का साया बनकर रूहें घुमती हो उन जगहों पर इंसान अपने डर पर काबू नहीं कर पाता है और एक अजीब दुनिया के सामने जिसके बारें में उसे कोई अंदाजा नहीं होता है, अपने घुटने टेक देता है। दुनिया भर में कई ऐसे पुराने किले है जिनका अपना एक अलग ही काला अतीत है और वहां आज भी रूहों का वास है। दुनिया में ऐसी जगहों के बारें में लोग जानते है, लेकिन बहुत कम ही लोग होते हैं, जो इनसे रूबरू होने की हिम्‍मत रखतें है। जैसे हम दुनिया में अपने होने या ना होने की बात पर विश्‍वास करतें हैं वैसे ही हमारे दिमाग के एक कोने में इन रूहों की दुनिया के होने का भी आभास होता है। ये दीगर बात है कि कई लोग दुनिया के सामने इस मानने से इनकार करते हों, लेकिन अपने तर्कों से आप सिर्फ अपने दिल को तसल्‍ली दे सकते हैं, दुनिया की हकीकत को नहीं बदल सकते है। कुछ ऐसा ही एक किलें के बारे में आपको बताउंगा जो क‍ि अपने सीने में एक शानदार बनावट के साथ-साथ एक बेहतरीन अतीत भी छुपाए हुए है। अभी तक आपने इस सीरीज के लेखों में केवल विदेश के भयानक और डरावनी जगहों के बारें में पढ़ा है, लेकिन आज आपको अपने ही देश यानी की भारत के एक ऐसे डरावने किले के बारे में बताया जायेगा, जहां सूरज डूबते ही रूहों का कब्‍जा हो जाता है और शुरू हो जाता है मौत का तांडव। राजस्‍थान के दिल जयपुर में स्थित इस किले को भानगड़ के किले के नाम से जाना जाता है। तो आइये इस लेख के माध्‍यम से भानगड़ किले की रोमांचकारी सैर पर निकलते हैं। 

भानगड़ किला एक शानदार अतीत के आगोश में भानगड़ किला सत्रहवीं शताब्‍दी में बनवाया गया था। इस किले का निर्माण मान सिंह के छोटे भाई राजा माधो सिंह ने करावाया था। राजा माधो सिंह उस समय अकबर के सेना में जनरल के पद पर तैनात थे। उस समय भानगड़ की जनसंख्‍या तकरीबन 10,000 थी। भानगढ़ अल्‍वार जिले में स्थित एक शानदार किला है जो कि बहुत ही विशाल आकार में तैयार किया गया है। चारो तरफ से पहाड़ों से घिरे इस किले में बेहतरीन शिल्‍पकलाओ का प्रयोग किया गया है। इसके अलावा इस किले में भगवान शिव, हनुमान आदी के बेहतरीन और अति प्राचिन मंदिर विध्‍यमान है। इस किले में कुल पांच द्वार हैं और साथ साथ एक मुख्‍य दीवार है। इस किले में दृण और मजबूत पत्‍थरों का प्रयोग किया गया है जो अति प्राचिन काल से अपने यथा स्थिती में पड़े हुये है। भानगड किले पर कालें जादूगर सिंघिया का शाप भानगड़ किला जो देखने में जितना शानदार है उसका अतीत उतना ही भयानक है। आपको बता दें कि भानगड़ किले के बारें में प्रसिद्व एक कहानी के अनुसार भागगड़ की राजकुमारी रत्‍नावती जो कि नाम के ही अनुरूप बेहद खुबसुरत थी। उस समय उनके रूप की चर्चा पूरे राज्‍य में थी और साथ देश कोने कोने के राजकुमार उनसे विवाह करने के इच्‍छुक थे। उस समय उनकी उम्र महज 18 वर्ष ही थी और उनका यौवन उनके रूप में और निखार ला चुका था। उस समय कई राज्‍यो से उनके लिए विवाह के प्रस्‍ताव आ रहे थे। उसी दौरान वो एक बार किले से अपनी सखियों के साथ बाजार में निकती थीं। राजकुमारी रत्‍नावती एक इत्र की दुकान पर पहुंची और वो इत्रों को हाथों में लेकर उसकी खुशबू ले रही थी। उसी समय उस दुकान से कुछ ही दूरी एक सिंघीया नाम व्‍यक्ति खड़ा होकर उन्‍हे बहुत ही गौर से देख रहा था। सिंघीया उसी राज्‍य में रहता था और वो काले जादू का महारथी था। ऐसा बताया जाता है कि वो राजकुमारी के रूप का दिवाना था और उनसे प्रगाण प्रेम करता था। वो किसी भी तरह राजकुमारी को हासिल करना चाहता था। इसलिए उसने उस दुकान के पास आकर एक इत्र के बोतल जिसे रानी पसंद कर रही थी उसने उस बोतल पर काला जादू कर दिया जो राजकुमारी के वशीकरण के लिए किया था।