बता राजस्थान "बाँ " थारी रीत कठै।
सीस कटियोड़ा धड़ लड़ रहया एड़ा पूत कठै।
गायां खातर गाँव गाँव मे बलिदानी जुंझार कठै।
फेरां सूं अधबीच मे उठतों "बो" पाबू राठौड़ कठै ।
कठै है अब "बा" भामाशाह साहूकार री रीत।
सुख दुख मे सब सागै रेवता बा मिनखा री प्रीत कठै।
मोठ बाजरा रो रोट ओर फोफलिया रो साग कठै।
मारवाड़ सू मेवाड़ तक गूंजता "बी" मीरां रा गीत कठै।
बता राजस्थान "बाँ " थारी रीत कठै।
पिंजरा लोहे का हो या सोने का क्या फर्क पड़ता है?
कांग्रेस लाओ या बीजेपी लाओ कोई फर्क नही पड़ता।
जब तक आप को आजादी का मतलब समझ ना आये तब तक सिर्फ पिंजरा बदलते रहने का क्या फायदा।
आजादी का मतलब सही मायने में समझो और देश बचाओ ।
तभी जा कर हमारे समाज और देश का उद्धार हो सकता है।
तूफान में ताश का घर नहीं बनता, रोने से बिगड़ा मुकद्दर नहीं बनता ।
हौसला रखो दुनिया जितने का ,
एक हार से कोई फ़क़ीर और एक जीत से कोई सिकंदर नहीं बनता ।।
!!"राजपूत है हम"!!
कहते तो हम सब है की राजपूत है हम ,
मानवता की लाज बचाने वाले हिन्द के
वो सपूत है हम ।
पर वो क्षत्रियोचित सँस्कार अब कँहा है ।
वो राणा और शिवाजी की तलवार अब कँहा है॥
बेटे तो हम उन मर्यादापुरुषोत्तम राम
के वँश के है ।
और राणा शिवाजी और दुर्गा दास जी के
अँश के है ॥
तो फिर राम का मर्यादित जीवन अब कँहा है ।
राणा और दुर्गादास जी के जैसी लगन अब कँहा हैँ ॥
दानी कर्ण और राजा शिवी का नाम हम लेते है ।
भागिरथ और सत्यवादी हरिश्चन्द्र की साख हम
दूनियाँ को देते है॥
तो फिर भागिरथ जैसा तप अब कँहा है ।
झुकाया था भगवान को सत्य के आगे वो
सत्य का अवलम्ब अब कँहा है ।
हमेँ गर्व है की हम शर कटने पे भी लङते थे ।
खेल खेल मेँ ही हमारे वीर जँगली शेरो से अङते थे।
जिस सत के सहारे धङ लङते थे वो सत
अब कँहा है ।
आज वो हजार हाथीयोँ का अथाह बल
अब कँहा है।
सतयुग, त्रेता और द्वापर तो क्षत्रियोँ के स्वर्ण युग रहै ।
कलयुग मे भी आज तक क्षत्रिय श्रेष्ठ रहे चाहै
उन्होने कठिन कष्ठ सहै ॥
पर सोचना तो हमे है जो क्षत्रिय धर्म
और सँस्कार भूल रहै ।
देख रहा हुँ आज शेर भी गीदङो की
गुलामी कबूल रहै है
अब तो ईस राख मे छुपे अँगारे
को जगा लो साथियोँ ।
जिस धर्म ने महान बनाया हमे
उसे अपनालो साथियोँ ।
जय क्षत्रिय ॥
जय क्षात्र धर्म ॥
क्षत्रिय हुँ, रुक नहीँ सकता ।
क्या है ये तुफान, इन्द्र का वज्र
आ जाये तो भी झुक नहीँ सकता ॥
मत करो झुठी कल्पना की मे डर जाउँगा ।
श्री राम का वँशज हुँ एक रावण तो क्या,
हजारो का सामना भी कर जाउँगा ॥
थोङा सा सिलसिला रुक क्या गया बलिदान का ।
पुरा का पुरा कुटुम्ब उठ खङा हो गया शैतान का॥
अरे हम वो है जिन्होने शरणागत
कबुतर को भी बचाया था ।
और कुँभकरण जैसे राक्षश को भी
अपने बाणो पे नचाया था॥
माता सीता के सत के तिनके
ने रावण को डरा दिया ।
और द्रोपदी के तप ने दुश्शासन
को भरी सभा मे हरा दिया ॥
अरे हम आज भी वो ही छ्त्रपति
शिवाजी के शेर है ।
बस भूल गये है अपने क्षात्र धर्म को
बस उसे अपनाने की ही देर हैँ ॥
सीस कटियोड़ा धड़ लड़ रहया एड़ा पूत कठै।
गायां खातर गाँव गाँव मे बलिदानी जुंझार कठै।
फेरां सूं अधबीच मे उठतों "बो" पाबू राठौड़ कठै ।
कठै है अब "बा" भामाशाह साहूकार री रीत।
सुख दुख मे सब सागै रेवता बा मिनखा री प्रीत कठै।
मोठ बाजरा रो रोट ओर फोफलिया रो साग कठै।
मारवाड़ सू मेवाड़ तक गूंजता "बी" मीरां रा गीत कठै।
बता राजस्थान "बाँ " थारी रीत कठै।
पिंजरा लोहे का हो या सोने का क्या फर्क पड़ता है?
कांग्रेस लाओ या बीजेपी लाओ कोई फर्क नही पड़ता।
जब तक आप को आजादी का मतलब समझ ना आये तब तक सिर्फ पिंजरा बदलते रहने का क्या फायदा।
आजादी का मतलब सही मायने में समझो और देश बचाओ ।
तभी जा कर हमारे समाज और देश का उद्धार हो सकता है।
तूफान में ताश का घर नहीं बनता, रोने से बिगड़ा मुकद्दर नहीं बनता ।
हौसला रखो दुनिया जितने का ,
एक हार से कोई फ़क़ीर और एक जीत से कोई सिकंदर नहीं बनता ।।
!!"राजपूत है हम"!!
कहते तो हम सब है की राजपूत है हम ,
मानवता की लाज बचाने वाले हिन्द के
वो सपूत है हम ।
पर वो क्षत्रियोचित सँस्कार अब कँहा है ।
वो राणा और शिवाजी की तलवार अब कँहा है॥
बेटे तो हम उन मर्यादापुरुषोत्तम राम
के वँश के है ।
और राणा शिवाजी और दुर्गा दास जी के
अँश के है ॥
तो फिर राम का मर्यादित जीवन अब कँहा है ।
राणा और दुर्गादास जी के जैसी लगन अब कँहा हैँ ॥
दानी कर्ण और राजा शिवी का नाम हम लेते है ।
भागिरथ और सत्यवादी हरिश्चन्द्र की साख हम
दूनियाँ को देते है॥
तो फिर भागिरथ जैसा तप अब कँहा है ।
झुकाया था भगवान को सत्य के आगे वो
सत्य का अवलम्ब अब कँहा है ।
हमेँ गर्व है की हम शर कटने पे भी लङते थे ।
खेल खेल मेँ ही हमारे वीर जँगली शेरो से अङते थे।
जिस सत के सहारे धङ लङते थे वो सत
अब कँहा है ।
आज वो हजार हाथीयोँ का अथाह बल
अब कँहा है।
सतयुग, त्रेता और द्वापर तो क्षत्रियोँ के स्वर्ण युग रहै ।
कलयुग मे भी आज तक क्षत्रिय श्रेष्ठ रहे चाहै
उन्होने कठिन कष्ठ सहै ॥
पर सोचना तो हमे है जो क्षत्रिय धर्म
और सँस्कार भूल रहै ।
देख रहा हुँ आज शेर भी गीदङो की
गुलामी कबूल रहै है
अब तो ईस राख मे छुपे अँगारे
को जगा लो साथियोँ ।
जिस धर्म ने महान बनाया हमे
उसे अपनालो साथियोँ ।
जय क्षत्रिय ॥
जय क्षात्र धर्म ॥
क्षत्रिय हुँ, रुक नहीँ सकता ।
क्या है ये तुफान, इन्द्र का वज्र
आ जाये तो भी झुक नहीँ सकता ॥
मत करो झुठी कल्पना की मे डर जाउँगा ।
श्री राम का वँशज हुँ एक रावण तो क्या,
हजारो का सामना भी कर जाउँगा ॥
थोङा सा सिलसिला रुक क्या गया बलिदान का ।
पुरा का पुरा कुटुम्ब उठ खङा हो गया शैतान का॥
अरे हम वो है जिन्होने शरणागत
कबुतर को भी बचाया था ।
और कुँभकरण जैसे राक्षश को भी
अपने बाणो पे नचाया था॥
माता सीता के सत के तिनके
ने रावण को डरा दिया ।
और द्रोपदी के तप ने दुश्शासन
को भरी सभा मे हरा दिया ॥
अरे हम आज भी वो ही छ्त्रपति
शिवाजी के शेर है ।
बस भूल गये है अपने क्षात्र धर्म को
बस उसे अपनाने की ही देर हैँ ॥