Sunday 27 October 2013

बता राजस्थान "बाँ " थारी रीत कठै।
सीस कटियोड़ा धड़ लड़ रहया एड़ा पूत कठै।
गायां खातर गाँव गाँव मे बलिदानी जुंझार कठै।
फेरां सूं अधबीच मे उठतों "बो" पाबू राठौड़ कठै ।
कठै है अब "बा" भामाशाह साहूकार री रीत।
सुख दुख मे सब सागै रेवता बा मिनखा री प्रीत कठै।
मोठ बाजरा रो रोट ओर फोफलिया रो साग कठै।
मारवाड़ सू मेवाड़ तक गूंजता "बी" मीरां रा गीत कठै।
बता राजस्थान "बाँ " थारी रीत कठै।









पिंजरा लोहे का हो या सोने का क्या फर्क पड़ता है?
कांग्रेस लाओ या बीजेपी लाओ कोई फर्क नही पड़ता।
जब तक आप को आजादी का मतलब समझ ना आये तब तक सिर्फ पिंजरा बदलते रहने का क्या फायदा।
आजादी का मतलब सही मायने में समझो और देश बचाओ ।
तभी जा कर हमारे समाज और देश का उद्धार हो सकता है।

तूफान में ताश का घर नहीं बनता, रोने से बिगड़ा मुकद्दर नहीं बनता ।
हौसला रखो दुनिया जितने का ,
एक हार से कोई फ़क़ीर और एक जीत से कोई सिकंदर नहीं बनता ।।






!!"राजपूत है हम"!!
कहते तो हम सब है की राजपूत है हम ,
मानवता की लाज बचाने वाले हिन्द के 
वो सपूत है हम ।

पर वो क्षत्रियोचित सँस्कार अब कँहा है ।
वो राणा और शिवाजी की तलवार अब कँहा है॥

बेटे तो हम उन मर्यादापुरुषोत्तम राम
के वँश के है ।
और राणा शिवाजी और दुर्गा दास जी के
अँश के है ॥

तो फिर राम का मर्यादित जीवन अब कँहा है ।
राणा और दुर्गादास जी के जैसी लगन अब कँहा हैँ ॥

दानी कर्ण और राजा शिवी का नाम हम लेते है ।
भागिरथ और सत्यवादी हरिश्चन्द्र की साख हम
दूनियाँ को देते है॥

तो फिर भागिरथ जैसा तप अब कँहा है ।
झुकाया था भगवान को सत्य के आगे वो
सत्य का अवलम्ब अब कँहा है ।

हमेँ गर्व है की हम शर कटने पे भी लङते थे ।
खेल खेल मेँ ही हमारे वीर जँगली शेरो से अङते थे।

जिस सत के सहारे धङ लङते थे वो सत
अब कँहा है ।
आज वो हजार हाथीयोँ का अथाह बल
अब कँहा है।

सतयुग, त्रेता और द्वापर तो क्षत्रियोँ के स्वर्ण युग रहै ।
कलयुग मे भी आज तक क्षत्रिय श्रेष्ठ रहे चाहै
उन्होने कठिन कष्ठ सहै ॥

पर सोचना तो हमे है जो क्षत्रिय धर्म
और सँस्कार भूल रहै ।
देख रहा हुँ आज शेर भी गीदङो की
गुलामी कबूल रहै है

अब तो ईस राख मे छुपे अँगारे
को जगा लो साथियोँ ।
जिस धर्म ने महान बनाया हमे
उसे अपनालो साथियोँ ।
जय क्षत्रिय ॥
जय क्षात्र धर्म ॥














क्षत्रिय हुँ, रुक नहीँ सकता ।
क्या है ये तुफान, इन्द्र का वज्र
आ जाये तो भी झुक नहीँ सकता ॥

मत करो झुठी कल्पना की मे डर जाउँगा ।
श्री राम का वँशज हुँ एक रावण तो क्या, 
हजारो का सामना भी कर जाउँगा ॥

थोङा सा सिलसिला रुक क्या गया बलिदान का ।
पुरा का पुरा कुटुम्ब उठ खङा हो गया शैतान का॥

अरे हम वो है जिन्होने शरणागत
कबुतर को भी बचाया था ।
और कुँभकरण जैसे राक्षश को भी
अपने बाणो पे नचाया था॥

माता सीता के सत के तिनके
ने रावण को डरा दिया ।
और द्रोपदी के तप ने दुश्शासन
को भरी सभा मे हरा दिया ॥

अरे हम आज भी वो ही छ्त्रपति
शिवाजी के शेर है ।
बस भूल गये है अपने क्षात्र धर्म को
बस उसे अपनाने की ही देर हैँ ॥

Saturday 26 October 2013

कठे गया बे राजपुत कठे गयी बा रजपूताई।
शिर कटता अर धङ लङता एसा हा म्हारा भाई।
आज समाज पर सँकट आयो तो म्हाने याद आई।
पन्ना धाय ओर राणी झाँसी री लक्ष्मी बाई।
समय समय की बात है और समय समय का खेल।
सँसकार अपने भूले हम और रहा ना आपस मे मेल।
जिनको हमने अपना माना और जिनपे अपनी जान लूटाई।
वो हि हमको आँख दिखाते करते जग मे हमारी हँसाई।
हिमालय की सी शान हमारी ,दुनिया ने ईसको माना है।
हजारे क्षत्राणीया जोहर मे कुदी,सतियो के सत को हमने जाना है।
क्षत्रिय और राजपूत कहलाने वालो आज हमे धिक्कार है।
दासी को जोधा बता जग को हँसाते देखो आज यँहा मक्कार है।
आज हमे क्षत्रिय रँग मे आके क्षत्रत्वबताना होगा।
बन्द कर दो झुठी कहानी वरना बहूत पछताना होगा।
आज हमे तलवार की नही साथ रहने की जरुरत है।
एक हो जाओ मेरे राजपूत भाईयो ये ही अब शुभ मुहरर्त है॥

Friday 25 October 2013

    
                                             गीदड़ धमकी से जो ड़र जाये ,                                                     वो राजपुत की संतान नही ।                                             हम शेर है दुनिया के .                                                      शायद तुम्हेँ पहचान नही ।                                            कान खोलकर सुन लो दुशमनो,                                                       चेहरे का खोल बदल देँगे ।                                            इतिहास की क्या हस्ति है ,                                                         पुरा भूगोल बदल देँगे ।

Wednesday 23 October 2013

नई दिल्ली के बारे में रोचक तथ्य 
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1. 1947 में जब भारत को स्वतंत्रता मिली तो “नई दिल्ली” (New Delhi) को पूर्ण स्वतंत्रता न देकर सीमित स्वतंत्रता दी गई थी।
2. 1956 में दिल्ली केन्द्रशासित प्रदेश बना।
3. नई दिल्ली का नियन्त्रण “नई दिल्ली म्युनिसिपल काउंसिल” के द्वारा किया जाता है जबकि शेष दिल्ली का नियन्त्रण “म्युनिसिपल कार्पोरेशन, दिल्ली” के द्वारा किया जाता है।
4. दिल्ली का कुतुब मीनार प्रस्तर निर्मित संसार की सबसे बड़ी मीनार है।
5. दिल्ली में स्थित खारी बावली एशिया का सबसे बड़ा मसालों (spice) का थोक बाजार है।
6. दिसम्बर 1911 में जब अंग्रेजों ने अपनी राजधानी को कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) से दिल्ली स्थानान्तरित किया तो उन्होंने दिल्ली से लगा हुआ “नई दिल्ली” (New Delhi) नामक एक नया शहर बनाने का निश्चय किया। “नई दिल्ली” नामक इस नये शहर बनना 1931 में पूर्ण हुआ और इसी कारण से पहले से बसा हुआ शहर दिल्ली के स्थान पर “पुरानी दिल्ली” कहलाने लगा।
जंग खाई तलवार से युद्ध नही लड़े जाते,
लंगडे घोड़े पे दाव नही लगाये जाते,
वीर तो लाखों होते है पर सभी महाराणा प्रताप नही होते ,
पूत तो होते है धरती पे सभी... पर सभी “राजपूत” नही होते..!!