Wednesday 5 February 2014

इस राजपूती ठाट ने ही तो हमे ठगा है ।

बरबाद हो गये हम जब से दारु का चस्का हमे लगा है॥



लाख टके का आदमी पी के एक टके का बन जाता है।


क्योकी पी दारु बेटा बाप के सामने ही तन जाता है॥



पीते ही दारु घूम जाती है यारो अपनी बुद्धि।


सँकल्प लो क्षत्रिय वीरो करनी होगी हमे समाज की शुद्धी॥



क्षत्रियो के लिये बने इस कलँक को अब छोङना होगा।


राजपूत तो शराबी होते है दुनिया के इस भ्रम को तोङना होगा॥



जिसने क्षत्रियोँ को छेङा उसे क्षत्रियो ने साबूत नही छोङा है।


फिर कैसे बच गई ये दारु जिसने क्षत्रियो की कमर को पुरी तरह से तोङा 


है॥


या तो क्षत्रिय कमजोर और कायर हो गये या दारु महान है।


वरना हम कैसे भूल गये की हम मर्यादापुरुषोतम राम की सन्तान है॥



सँकल्प लो क्षत्रियो शराब है खराब इसे हम छोङ देँगे।


अपनायेँगे मर्यादा को और दुनिया को राम राज्य की और मोङ देँगे॥



JAI RAJPUTANA