Saturday 13 December 2014

               

                                           दरद दिसावर



लोग जाणै कायदा ना जाणै अपणेस  
राम भलाईँ मौत दे मत दीजै प्रदेश || 

ना सुख चाहु सुरग रो नरक आवसी दाय। 
म्हारी माटी गांव री गळियाँ जै रळ जाय॥ 

जोगी आयो गांव सूँ ल्यायो समचार  
काळ पड्यो नी धुक सक्यो दिवलाँ रो त्युहार्  

इकतारो अर गीतडा जोगी री जागीर  
घिरता फिरता पावणा घर घर थारो सीर  

जोगी बंतल कराँ पूछा मन री बात  
उगता हुसी गांव मँ अब भी दिन अर रात  

जमती हुसी मैफलाँ मद छकिया भोपाळ  
देता हुसी आपजी अब पी कै गाळ  

दारू पीवै आपजी टूट्यो पड्यो गिलास  
पी कै बोलै फारसी पड्या एक किलास  

साँझ ढल्याँ नित गाँव री भर ज्याती चौपाळ  
चिलमा धूँवा चालती बाताँ आळ पताळ  

पाती लेज्या डाकिया जा मरवण रै देश  
प्रीत बिना जिणो किसो कैजे सन्देश  

काळी कोसा आंतरै परदेशी री प्रीत  
पूग सकै तो पूग तूँ नेह बिजोगी गीत  

मरवण गावै पीपली तेजो गावै लोग  
मै बैठयो परदेश मँ भोगू रोग बिजोग ।। 

सावण आयो सायनी खेता नाचै मोर  
म्हारै नैणा रात दिन गळ गळ जावै मोर

जद तू मिलसी बेलिया करस्यूँ मन री बात
बध बध देस्यू ओळमा भर भर रोस्यूँ बाँथ

पैली तारिख लागताँ जागै घर भाग
मनियाडर री बाट मँ बाप उडावै काग

फागण राच्यो फोगला रागाँ रची धमाल
चाल सपन तूँ गाँव री गळीयाँ मँ ले चाल

घर, गळियारा, सायना, सेजाँ सुख री छाँव्
दो रोट्या रै कारणै पेट छुडावै गाँव

चैत चुरावै चित्त नै चित्त आयो चित्तचोर
गौर बणाती गौरडी खुद बणगी गणगौर

चपडासी है सा रो बूढो ठेरो बाप
बडै घराणै भोगरयो गेल जनम रा पाप॥

बेली तरसै गांव मँ मन मँ तरसै हेत
घिर घिर तरसै एकली सेजाँ मँ परणेत

भाँत भाँत री बात है बात बात दुभाँत
परदेशाँ रा लोगडा ज्यूँ हाथी रा दांत

गळै मशीनाँ मँ सदा गांवा री सै मौज
परदेसाँ मै गांगलो घर रो राजा भोज

बैठ भलाईँ डागळै मत कर कागा कांव
चित चैते अर नैण मँ गूमण लागै गांव ।।

बडा बडेरा कैंवता पंडित और पिरोत।
बडै भाग और पुन्न सूँ मिलै गांव री मौत |

लोग चौकसी राखता खुद बांका सिरदार
बांकडला परदेस मँ बणग्या चौकीदार

मरती बेळ्या आदमी रटै राम र्रो नांव
म्हारी सांसा साथ ही चित्त सू जासी गांव

मै परदेशी दरद हूँ तू गांवा री मौज
मै हू सूरज जेठ रो तूँ धरती आसोज॥

बेमाता रा आंकङा मेट्या मिटे नै एक
गूंगै री ज्यू गांव रा दिन भर सुपना देख

दादोसा पुचकारता दादा करता लाड
पीसाँ खातर आपजी दियो दिसावर काढ ।।

मायड रोयी रात भर रह्यो खांसतो बाप
जिण घर रो बारणो मै छोड्यो चुपचाप

जद सूँ परदेसी हुयो भूल्यो सगळा काम
गांवा रो हंस बोलणौ कीया भूलू राम

गरजै बरसै गांव मै चौमासै रो मेह
सेजा बरसै सायनी परदेसी रो नेह

कुण चुपकै सी कान मै कग्यो मन री बात
रात हमेशा आवती रात नै आयी रात


आंगण मांड्या मांडणा कंवलै मांड्या गीत
मन री मैडी मांडदी मरवण थारी प्रीत

दोरा सोराँ दिन ढल्यो जपताँ थारो नाम
च्यार पहर री रात कीयाँ ढळसी राम

सांपा री गत जी उठी पुरवाई मँ याद
प्रीत पुराणै दरद रै घांवा पडी मवाद

नैण बिछायाँ मारगाँ मन रा खोल कपाट
चढ चौबारै सायनी जोती हुसी बाट

प्रीत करी गैला हुया लाजाँ तोङी पाळ
दिन भर चुगिया चिरडा रात्यु काढी गाळ

पाती लिखदे डाकिया लिखदे सात सलाम
उपर लिख दे पीव रो नीचै म्हारो नांम

दीप जळास्यु हेत रा दीवाळी रो नाम
इण कातिक तो घराँ ! परदेसी राम

जोबण घेर घुमेर है निरखै सारो गांव
म्हारै होठाँ आयग्यो परदेसी रो नांव

जीव जळावै डाकियो बांटै घर घर डाक
म्हारै घर रै आंगणै कदै देख झांक

मैडी उभी कामणी कामणगारो फाग
उडतो सो मन प्रीत रो रोज उडावै काग

बागाँ कोयल गांवती खेता गाता मोर
जब अम्बर मँ बादळी घिरता लोराँ लोर

बाबल रै घर खेलती दरद जाण्यो कोय
साजन थारै आंगणै उमर बिताई रोय

बाबल सूंपी गाय ज्यूँ परदेसी रै लार
मार एक बर ज्यान सूँ तडपाके मत मार

नणद,जिठाणी,जेठसा दयोराणी अर सास
सगलाँ रै रैताँ थका थाँ बिन घणी उदास

सुस्ताले मन पावणा गांव प्रीत री पाळ
मिनख पणै रै नांव पर सहर सूगली गाळ

सहर डूंगरी दूर री दीखै घणी सरूप
सहर बस्याँ बेरो पडै किण रो कैडो रूप

खाणो पीणो बैठणो घडी नही बिसराम
बो जावै परदेस मँ जिण रो रूसै राम || 

कीडी नगरो सहर है मोटर बंगला कार
जठै जमारो बेच कै मिनख करै रूजगार

अजब रीत परदेस री एक सांच सौ झूँठ
हँस बतळावै सामनै घात करै पर पूठ

खेत खळा अर रूंखडा बै धोरा बै ऊंट
बाँ खातर परदेस के तज देवूँ बैकूँट

देह मशीना मै गळै आयो मौसम जेठ
बिरथा खोयी जूण म्हे परदेसा मँ बैठ ।।

ऊमस महीना जेठ रो बो पीपळ रो गांव
संगळियाँ संग खेलता चोपङ ठंडी छाव

गाता गीत गा सक्या करता करया कार
जीतै जी ना जी सक्या मरिया पडसी पार


ठीडै ठाकर ठेस रा ठीडै ही ठुकरेस
बिना ठौड अर ठाईचै क्यूँ भटकै परदेस

समरथ जाणु लेखणी सांचो जाणू रोग
गावैला जद चाव सूँ दरद दिसावर लोग ।।

सूना सा दिन रात है सूनी सूनी सांझ
बंस बध्यो है पीर रो खुशिया रै गी बांझ ।।

हिरण्याँ हर ले नीन्द नै किरत्याँ कैदे बात
तारा गिणता काटदे नित परदेसी रात

रिमझिम बरसै भादवो झरणा री झणकार
परदेसी रै आन्गणै रूत लागी बेकार

साखीणो संसार है कद तक राखा साख
साख राखताँ गांव मँ मिटगी खुद री साख

तन री मौज मजूर हा मन री मौज फकीर
दोनूँ बाताँ रो कठै परदेसाँ मँ सीर

ऊंचा ऊंचा माळिया ऊची ऊंची छांव
महला सूँ चोखो सदा झूंपडियाँ रो गांव

बाट जोंवता जोंवता मन हुग्यो बैसाख
छोड प्रीत री आस नै प्रीत रमाली राख

जद सूँ छोड्यो गांव नै हिवडै पडी कुबाण
गीत प्रीत री याद मँ आवै नित मौकाण

प्रीत आपरी सायनी होगी म्हारै गैल
भारी पडज्या गांव नै जिया कंगलौ छैल॥

प्रीत करी नादान सूँ हुयो घणो नुकसान
आप डूबतो पांडियो ले डूब्यो जुजमान

हेत कामयो देश मँ परदेसा मँ दाम
किण री पूजा मै करू गूगो बडो राम

बाबो मरगो काळ मै करग्यो बारा बाट
घर मँ टाबर मौकळा कै करजै रो ठाठ

मारै आह गरीब री करदे मटिया मेट
पण कंजूसी सेठ रो रति ना सूकै पेट

किण नै देवाँ ओळमाँ किण नै कैँवा बात
टाबरियाँ रै पेट पर राम मार दी लात
सूका सूका खेतडा पण नैणा मै बाढ
घर मँ कोनी बाजरी ऊपर सूँ दो साढ

जद सूँ पाकी बाजरी काचर मोठ समेत
दिन भर नापै चाव सूँ पटवारी जी खेत

फिर फिर आवै बादळी घिर घिर आवै मेह
सर सर करती पून मँ थर थर कांपै देह

होगी सोळा साल री बेटी करै बणाव
कद निपजैली टीबडी कद मांडूला ब्याव

टूटी फूटी झूँपडी बरसै गरजै गाज
इण चौमासै रामजी दोराँ रहसी लाज

टाबर टीकर मोकळाँ करजै री भरमार
राम रूखाळी राखजै थाँ सरणै घरबार

निरधनियाँ नै धन मिल्यो रोजणख्याँ नै राग
राम बता कद जागसी परदेसी रा भाग

उगतो पिणघट ऊपराँ सुणतो मिठी बात
गळी गुवाडी घूमतो चान्दो सारी रात

ना पिणघट ना बावडी ना कोयल ना छाँव
तो भी चोखो सहर सूँ म्हारो आधो गांव

सांझ ढळ्याँ नित जांवता देखै सारो गांव
पिरमा थारी लाडली पटवारी रै ठांव

पैली उठती गौरडी पाछै उठती भोर
झांझर कै ही नीरती सगळा डांगर ढोर

छैल सहर सूँ बावडै खरचै धोबा धोब
पडै गांव मै रात दिन पटवारी सा रोब

जद मन तरस्यो गांव नै जद जद हुयो अधीर
दूहा रै मिस मांडदी परदेसी री पीर

प्रीत आपरी अचपळी घणी करै कुचमाद
सुपना मै सामी रवै जाग्या आवै याद

पाती लिख रियो गांव नै अपरंच समचार
दुख पावुँ परदेस मँ जीवूँ हूँ मन मार

राग रंग नी आवडै कींकर उपजै तान
घर मै कोनी बाजरी अर टूट्योडी छान

घर दे घर रूजगार दे घर घर री दे साख
ना देवै तो सांवरा जीवण पाछो राख

बिन हरियाळी रूंखडा घरघूल्या सा ठांव
राहीदीखै दूर सूँ थारो आधो गांव

लेग्या तो हा गांव सूँ कंचन देही राज
पाछी ल्याया सहर सूँ खांसी कब्जी खाज

गाय चराती छोरडयाँ जोबन सूँ अणजाण
देख ओपरा जा लूकै कर जांटी री आण ।।

जोध जुवानी बेलड्याँ मिलसी करयाँ बणाव
आखडजै मत पावणा पगडंड्या रै गांव

के तडपासी बादळी के कोयल री कूक
पैली ही सूँ काळजो हुयो पड्यो दो टूक

अजब पीर परदेस री मर जीवै जीव
घर मै तरसै गोरडी परदेसाँ मै पीव ।।

ना आंचळ ना घूंघटो ना हीवडै मै लाज
घिरसत पाळै गोरडी रोटी पोवै राज

घाटै रो घर दे दिये दुख दीजै अणचींत
मतना दीजे सांवरा परदेसी री प्रीत

धान महाजन रै घराँ ढोर बिक्या बे दाम
करज पुराणो बाप रो कीयाँ चुकै राम

बेटो तो परदेस मै घर बूढा मा बाप
दोनो पीढी दो जघाँ दुख भोगै चुपचाप

ठाला बिन रूजगार कै ताना देता लोग
भरी अब तक गांव सूँ मनस्या बळण जोग

जद जासी परदेस तूँ हुसी जद बरबाद
दरद दिसावर कडया रोज करैलो याद

कितरा ही दुहा लिखूँ अकथ रहीज्या भाव
परदेसी रो दरद तो है गूंगै रो भाव


Saturday 22 November 2014



शूरवीर हिंदूओ के 11 महान सत्य अवश्य पढियेगा,,



1. जयमाल मेड़तिया ने एक ही झटके मे हाथी का सिर काट डाला था.

2. करौली के जादोन राजा अपने सिंहासन पर बैठते वक़्त अपने दोनो हाथ जिन्दा शेरो पर रखते थे.

3. जोधपुर के यशवंत सिंह के 12 साल के पुत्र पृथ्वी सिंह ने हाथो से औरंगजेब के खूंखार भूखे जंगली शेर का 


    जबड़ा फाड़ डाला था.

4. राणा सांगा के शरीर पर छोटे-बड़े 80 घाव थे,युद्धों में घायल होने के कारण उनके एक हाथ नही था एक 


   पैर नही था, एक आँख नहीं थी उन्होंने अपने जीवन-काल में 100 से भी अधिक युद्ध लड़े थे

5. एक राजपूत वीर जुंझार जो मुगलो से लड़ते वक्त शीश कटने के बाद भी घंटो लड़ते रहे आज उनका सिर 


    बाड़मेर में है, जहा छोटा मंदिर हैं और धड़ पाकिस्तान में है.

6. रायमलोत कल्ला का धड़ शीश कटने के बाद लड़ता-लड़ता घोड़े पर पत्नी रानी के पास पहुंच गया था तब रानी

    ने गंगाजल के छींटे डाले तब धड़ शांत हुआ उसके बाद रानी पति कि चिता पर बैठकर सती हो गयी थी.

7. चित्तोड़ में अकबर से हुए युद्ध में जयमाल राठौड़ पैर जख्मी होने कि वजह से कल्ला जी के कंधे पर बैठ कर युद्ध 


    लड़े थे, ये देखकर सभी युद्ध-रत साथियों को चतुर्भुज भगवान की याद आयी थी, जंग में दोनों के सर काटने के 

     बाद भी धड़ लड़ते रहे और राजपूतो की फौज ने दुश्मन को मार गिराया अंत में अकबर ने उनकी वीरता से          प्रभावित हो कर जैमल और पत्ता जी की मुर्तिया आगरा के किलें में लगवायी थी.

8. राजस्थान पाली में आउवा के ठाकुर खुशाल सिंह 1877 में अजमेर जा कर अंग्रेज अफसर का सर काट कर ले 

     आये थे और उसका सर अपने किले के बाहर लटकाया था तब से आज दिन तक उनकी याद में मेला लगता है.

9. महाराणा प्रताप के भाले का वजन 80 किलो था और कवच का वजन 80 किलो था और कवच, भाला, ढाल, 


    और हाथ मे तलवार का वजन मिलाये तो 207 किलो था.

10. सलूम्बर के नवविवाहित रावत रतन सिंह चुण्डावत जी ने युद्ध जाते समय मोह-वश अपनी पत्नी हाड़ा रानी  


        की कोई निशानी मांगी तो रानी ने सोचा ठाकुर युद्ध में मेरे मोह के कारण नही लड़ेंगे तब रानी ने निशानी            
        के तौर पैर अपना सर काट के दे दिया था, अपनी पत्नी का कटा शीश गले में लटका औरंगजेब की सेना के 

       साथ भयंकर युद्ध किया और वीरता पूर्वक लड़ते हुए अपनी मातृ भूमि के लिए शहीद हो गये थे.

11. हल्दी घाटी की लड़ाई में मेवाड़ से 20000 सैनिक थे और अकबर की और से 85000 सैनिक थे फिर भी 


      अकबर की मुगल सेना पर राजपूत भारी पड़े थे.