Thursday 15 October 2015

ऐ मेरे स्कूल मुझे जरा फिर से तो बुलाना

,वो कमीज के बटन ऊपर नीचे लगाना
अपने बाल खुद न काढ पाना पी टी शूज को चाक से चमकाना

,,वो काले जूतों को पैंट से पोछते जाना 
ऐ मेरे स्कूल मुझे जरा फिर से तो बुलाना ...          
                                                         ,,वो बड़े नाखुनो को दांतों से चबाना 
और लेट आने पे मैदान का चक्कर लगाना 
वो prayer के समय class में ही रुक जाना 
पकडे जाने पे पेट दर्द का बहाना बनाना 
ऐ मेरे स्कूल मुझे जरा फिर से तो बुलाना ...
                                                        ,,वो टिन के डिब्बे को फ़ुटबाल बनाना 
ठोकर मार मार उसे घर तक ले जाना 
साथी के बैठने से पहले बेंच सरकाना 
और उसके गिरने पे जोर से खिलखिलाना 
ऐ मेरे स्कूल मुझे जरा फिर से तो बुलाना ...
                                                     ,,गुस्से में एक-दूसरे की कमीज पे स्याही छिड़काना 
वो लीक करते पेन को बालो से पोछते जाना 
बाथरूम में सुतली बम पे अगरबती लगा छुपाना 
और उसके फटने पे कितना मासूम बन जाना 
ऐ मेरे स्कूल मुझे जरा फिर से तो बुलाना ...
                                                        ,,वो Games Period के लिए Sir को पटाना 
Unit Test को टालने के लिए उनसे गिडगिडाना 
जाड़ो में बाहर धूप में Class लगवाना 
और उनसे घर-परिवार की बातें सुनते जाना 
ऐ मेरे स्कूल मुझे जरा फिर से तो बुलाना ...
                                                          ,,वो बेर वाली के बेर चुपके से चुराना 
लाल –काला चूरन खा एक दूसरे को जीभ दिखाना 
जलजीरा , इमली देख जमकर लार टपकाना 
साथी से आइसक्रीम खिलाने की मिन्नतें करते जाना 
ऐ मेरे स्कूल मुझे जरा फिर से तो बुलाना ...
                                                          ,,वो लंच से पहले ही टिफ़िन चट कर जाना 
अचार की खुशबूं पूरे Class में फैलाना 
वो पानी पीने में जमकर देर लगाना 
बाथरूम में लिखे शब्दों को बार-बार पढके सुनाना 
ऐ मेरे स्कूल मुझे जरा फिर से तो बुलाना ...
                                                               ,,वो Exam से पहले गुरूजी के चक्कर लगाना 
बार – बार बस Important पूछते जाना 
वो उनका पूरी किताब में निशान लगवाना 
और हमारा पूरे Course को देख चकराना 
ऐ मेरे स्कूल मुझे जरा फिर से तो बुलाना ...
                                                         ,,वो Farewell पार्टी के दिन पेस्ट्री समोसे खाना 
और जूनियर लड़के का ब्रेक डांस दिखाना 
वो टाइटल मिलने पे हमारा तिलमिलाना 
वो साइंस वाली मैडम पे लट्टू हो जाना 
ऐ मेरे स्कूल मुझे जरा फिर से तो बुलाना ...
                                                        ,,वो मेरे स्कूल का मुझे यहाँ तक पहुचाना 
और मेरा खुद में खो उसको भूल जाना 
मेरा बाजार में किसी परिचित से टकराना
वो जवान गुरूजी का बूढ़ा चेहरा सामने आना ..

तुम सब अपने स्कूल एक बार जरुर जाना .....
दूध दही ने चाय चाटगी, फूट चाटगी भायाँ ने
इंटरनेट डाक ने चरगी, भैंस्या चरगी गायाँ ने

टेलीफून मोबाईल चरग्या, नरसां चरगी दायाँ ने
देखो मर्दों फैसन फटको, चरग्यो लोग लुगायाँ ने

साड़ी ने सल्वारां खगी, धोतीने पतलून खायगी
धर्मशाल ने होटल खागी, नायाँ ने सैलून खायगी

ऑफिस ने कम्प्यूटर खाग्या, 'मागी' चावल चून खायगी
कुवे भांग पड़ी है सगळे, सब ने पछुवा पून खायगी

राग रागनी फिल्मा खागी, 'सीडी' खागी गाणे ने
टेलीविज़न सबने खाग्यो, गाणे ओर बजाणे ने

गोबर खाद यूरिया खागी, गैस खायगी छाणे ने
पुरसगारा ने बेटर खाग्या, 'बफ्फे' खागी खाणे ने

चिलम तमाखू हुक्को खागी, जरदो खाग्यो बीड़ी ने
बच्या खुच्यां ने पुड़िया खाग्या, खाग्या साद फकीरी ने

गोरमिंट चोआनी खागी, हाथी खाग्यो कीड़ी ने
राजनीती घर घर ने खागी, भीड़ी खाग्यो भीड़ी ने

हिंदी ने अंग्रेजी खागी, भरग्या भ्रस्ट ठिकाणे में
नदी नीर ने कचरो खाग्यो, रेत गई रेठाणे में

धरती ने धिंगान्या खाग्या, पुलिस खायरी थाणे में
दिल्ली में झाड़ू सी फिरगी, सार नहीं समझाणे में

ढाणी ने सेठाणी खागी, सहर खायग्यो गांवां ने
मंहगाई सगळां ने खागी, देख्या सुण्या न घावां ने

अहंकार अपणायत खागी, बेटा खाग्या मावां ने
भावुक बन कविताई खागी, 'भावुक' थारा भावां ने

Saturday 11 July 2015

ढूंढता रह ज्याओगा !!!!!!!!!!!!!! 

लुगाइयों का घाघरा, खिचड़ी का बाजरा,
सिरसम का साग, सिर पे पाग, 
औंगण में ऊखल, कूण म मूसल, 
घरां म लस्सी, लत्ते टांगण की रस्सी,
आग चूल्हे की, संटी बीन (दुल्हे) की, 
पहलवानां का लंगोट, हनुमानजी का रोट,
घूंघट आली लुगाई, गावं म दाई, 

ढूंढता रह ज्याओगा !!!!!!!!!!!!!! 

घरां म बुड्ढे, बैठकां म मुड्ढे,
बास्सी रोटी अर अचार, गली म घुमते लुहार, 
खांड का कसार, टींट का अचार, 
कांसी की थाली, डांगर के पाली, 
बीजणा नौ डांडी का, दूध दही घी हांडी का, 
रसोई म दरात, बालकां की स्याही की दावत, 
बटेऊआं की शान, बहुआं की आन,
ताऊ का हुक्का, ब्याह का रुक्का, 
पाटडे में नहाणा, पत्तल पे खाणा,
पाणी भरेडा देग, भाण-बेट्याँ रा नेग,

ढूंढता रह ज्याओगा !!!!!!!!!!!!!!

Tuesday 16 June 2015

ऊँचा-ऊँचा धोरा अठै, लाम्बो रेगिस्तान।
कोसां कोस रुंख कोनी, तपतो राजस्थान।।
फोगला अर कैर अठै, करै भौम पर राज।
गोडावण रा जोङा अठै, मरुधर रा ताज।।
कुंवा रो खारो पाणी, पीवै भैत मिनख।
मेह रो पालर पाणी, ब्होत जुगत सूं रख।।
कोरी कोरी टीबङी, उङै रेत असमान।
सणसणाट यूं बाज रही, जणुं सरगम रा गीत।।
सोनै ज्यूं चमके रेत, चाँदनी रातां में।
रेत री महिमा गावै, चारण आपरी बातां में।।
इटकण मिटकण दही चटोकण, खेलै बाल गोपाल अठै।
गुल्ली डंडा खेल प्यारा, कुरां कुरां और कठै।।
अरावली रा डोंगर ऊंचा, आबू शान मेवाङ री।
चम्बल घाटी तिस मिटावै, माही जान मारवाङ री।।
हवेलियाँ निरखो शेखावाटी री, जयपुर में हवामहल।
चित्तौङ रा दुर्ग निरखो, डीग रा निरखो जलमहल।।
संगमरमर बखान करै, भौम री सांची बात।
ऊजळै देश री ऊजळी माटी, परखी जांची बात।।
धोरा देखो थार रा, कोर निकळी धोरां री।
रेत चालै पाणी ज्यूं, पून चालै जोरां री।।
भूली चूकी मेह होवै, बाजरा ग्वार उपजावै।
मोठ मूँग पल्लै पङे तो, सगळा कांख बजावै।।
पुष्कर रो जग में नाम, मेहन्दीपुर भी नाम कमावै।
अजमेर आवै सगळा धर्मी, रुणेचा जातरु पैदल जावै।।
रोहिङै रा फूल भावै, रोहिङो खेतां री शान।
खेजङी सूँ याद आवै, अमृता बाई रो बलिदान।।
सोने री धरती अठै, चांदी रो असमान।
रंग रंगीलो रस भरियो, ओ म्हारो राजस्थान।।
रंग-रंगीलो राजस्थान, नाज करै है देस।
न्यारी-न्यारी बोली अठैगी, न्यारा-न्यारा भेस।।
राणा जेङो वीर अठै, राजस्थान री शान।
जयपुर जेङो नगर अठै, सैलानियां री जान।।
अरावली पर्वत ऊंचा घणा, कांई म्हे करां बखान।
राजकनाळ लाम्बी घणी, मरुधर रो वरदान।।
चेतक तुरंग हठीलो घणो, भामाशाह महादानी।
सांगा हिन्दू लाज बचावणा, जौहर पद्मण रानी।।
ढोला मरवण प्रेम कहाणी, गावै कवि सुजान।
आल्हा ऊदल वीर कहाणी, चारण करै बखान।।
जैपुर कोटा अर् बीकाणा, जग में मान बढावै।
अलवर उदैपुर जोधाणा भी, राजस्थान री शान कहावै।।
गोगामेङी गोगो धुकै, रुणेचा रामदेव जी।
सालासर हनुमानजी बैठ्या, कोळू पाबूदेव जी।।
पल्लु में काळका माता, देशनोक में माँ करणी।
सुन्धा परबत री सुन्धा माता, तीनूं लोक दुख हरणी।।
राठी गौ री शान प्यारी, बैल नागौरी चोखा घणा।
नसल ऊंट री एक जाणी, बीकाणै में जो नाचणा।।
घूमर घालै गोरियां, माणस बजावै चंग।
होळी खेलै देवर भाभी, उङै कसूमल रंग।।
जयपुर में गणगौर सवारी, राजसी ठाठ दिखावै।
दशहरो मेळो कोटा रो, धरमी मान बढावै।।
साफा अठै जोधपुर रा, परदेशां कीर्ति बखाणै।
मोचङी भी न्यारी-न्यारी, देशोदेश जाणै।।

Friday 6 February 2015


                           गाँव मुझे तेरी बहुत याद आती है
गाँव मुझे तेरी बहुत याद आती है..
तेरी वो मिट्टी की महक और चिड़ियाओं की चहक
तेरे वो ऊँचे ऊँचे रेत के टीले जो कभी ना हो गीले
तेरे पेड़ो की वो ठंडी और गहरी छाया
जिनके नीचे बैठकर तृप्त हो जाये काया
वो ढ़लते सूरज की लालिमा अमावस्या रात की कालिमा
वो कहानी सुनाती दादीमा वो खाना बनाती बहन सालिमा
इन सब की रह रहकर यादे आती है
गाँव मुझे तेरी बहुत याद आती है।
वो बरगद के पेड़ पर रस्सी से बना झूला
याद आता है तो ख़ुशी से नही समता मै फुला
आम खाने उन पेड़ो पर छुप छुप के चढ़ना
और माली को आता देख वहा से भगना
भगते भगते गिर के चोट खाना
फिर बाबूजी का डाटना और माँ का समझाना
ये यादे मुझे बहुत सताती है
गाँव मुझे तेरी बहुत याद आती है
वो मोटी मोटी मक्के की रोटियों पे पड़ी सरसों की साग
जितना खाता हूँ इनको मै उतनी ही बढ़ जाती है लाग
वो तेरे यहाँ बनता दाल बाटी चूरमा
खाकर के उसे जो बन जाये शूरमा
तेरे खाने का तो मैं हमेशा रहूँगा कायल
याद आता है जब भी मुझे कर देता है घायल
नाम लेते ही इन पकवानो का मुझे भूख लग जाती है
गाँव मुझे तेरी बहुत याद आती है
शाम होते ही जंगल से गायों का चरकर भागते हुए आना
और भाग भागकर कच्चे रास्तो पर मिट्टी और धूल उड़ाना
सूर्यास्त होते ही गोधूलि वेळा का आ जाना
और बाड़ो में बंधे सभी बछड़ो का एक साथ रंभाना
किसान का आकर के उन्हें खोलना,खुलते ही माँ के थन से जाके चिपक जाना
और ऐसे जताना जैसे उसे मिल गया हो कुबेर का खजाना
फिर किसान का गाय से दूध निकालना और चाय बनाकर घर आये मेहमानो को बड़े प्यार से पिलाना
वैसी प्यार भरी चाय की चुस्की यहाँ दिल्ली में नही मिल पाती है
गाँव मुझे तेरी बहुत याद आती है
वो मिट्टी और घास फुस से बना खपरेल का घर
जिसे किसी किसान ने बनाया बहुत मेहनत कर
उस कच्चे घर में बारिश का पानी चू चू के टपकना
जिसे देख चारपाई पे लेते किसान का आँखे झपकना
पोष की सर्दी में आई ठंडी हवा उसके ख़ून को जमा जाती है
और ज्येष्ठ में आई पुरवाई उसके अरमानो को ठंडा कर जाती है
गाँव मुझे तेरी बहुत याद आती है
वो लम्बे चौड़े आदमियों के सिर पर बंधा साफा
जिन्हें देखकर लगता है होगा इनमे बहुत आपा
उन्हें कोई मतलब नही होता दुनियादारी से
वो तो बस जीते और मरते है ख़ुद्दारी से
एक दूसरे से मिलकर और हँसते हँसते जीते है
भले ही जहर कितना हो जिन्दगी में उसे घुट घुट के पीते है
उनकी बस एक ही कमजोरी है वो है कर्ज
जिसका शायद अभी तक नही है कोई मर्ज
कब उबरेंगे ये कर्ज से मुझे ये चिन्ता खाती है
गाँव मुझे तेरी बहुत याद आती है
मै सिंटू बन्ना परदेश में रहकर गांव को नही भूल पाउँगा
रो रोके रोज खुद को दिलासा देता हूँ की एक दिन आयेगा जब मै वापस अपने गाँव जाऊँगा।