अब भी क्षत्रिय तुम उठते नहीं फिर आखिर उठके करोगे क्या ?
वीरों का जीना जीते नहीं बकरों की मौत मरोगे क्या ?
जौहर की ज्वाला धधकेगी पानी में डूब मरोगे क्या ?
युग पलटा है प्रणाली पलटी रोना पलटा हुंकारों में
पानी जो गया पातालों में अब पलटेगा तलवारों में
पलटे दिन की रणभेरी है उसको अनसुनी करोगे क्या ?
युग युग से हुंके उठती है चितौड़ दुर्ग दीवारों से
हिन्दू क्या रोते पृथ्वी रोती आंसू पड़ते तारों से
वे केसरिया बन जूझे थे तुम पीठ दिखा भागोगे क्या ?
शक्ति शौर्य जो पास नहीं तो विजय नहीं जयकारों में
निर्बल की नैया डगमग करती दोष कहाँ पतवारों में
अब बाहूबल संचित करने भी धीरे कदम रखोगे क्या ?
शिवी ने शरणागत खग को बचाने मांस निज काट दे दिया था।
गौरक्षा हित तेरा पूर्वज स्वयं समर्पित हो गया था।
अब मरने की बेला आएगी आँखे बंद करोगे क्या ?
धर्म भ्रष्ट कर्तव्यहीन बन जग में भी जिवोगे क्या ?
अपने हाथों से घर जलवा कर रस्ते पर लौटोगे क्या ?
रे प्राण गए तो देह नाश से कभी बचा पावोगे क्या ?
गीदड धमकी से जो ङर जाये, वो राजपूत की संतान नहीं,
हम शेर हैं दुनिया के, शायद तुम्हें पहचान नहीं ।
कान खोल कर सुन ले दुश्मन, चेहरे का खोल बदल देंगे,
इतिहास की क्या हस्ती है, पूरा भूगोल बदलदेंगे ll"
राजपुत हुं राजपुताना चाहता हूं,
फिर से सबको एक बनाना चाहता हूं।
राज आपना वापस आये या ना आये,
लेकिन अपनी इज्जत वापस लाना चाहता हूं।।
ऐक बनो , नेक बनो .. ..
जुड गए तो सिंह (शेर) भी घबराएगा...
टुट गए तो गीदड भी सतायेगा।।