Thursday 28 August 2014

जहां पूजा जाता था मुझको,अब रहा वो हेिन्दुस्तान नही|
पापीयों की भीड बढ गई,समझता क्यूँ "तहलान" नही|
मुझे बांधके ले गए कसाई,रस्सी खोल नही सकते|
मुस्लिम काटते सरेआम मुझे,हिन्दू बोल नही सकते|
धिक्कार मेरी रक्शा के लिए,भारत में कोई कानून नही|
झूठी छाती मत ठोको,हिन्दू का तुम में खून नही|
मुझे बचा नही सकते तो,फिर किस लिए माता कहते हो|
बहते रहते हैं मेरे आंसू ,तुम फिर भी गूंगे बनके रहते हो|
क्या हाल होता है मेरा, कभी आकर देखो कत्लखानों में|
वहां दया नाम की चीज,बिलकुल होती नहीं शैतानों में|
मारने से पहले कई दिन,यहाँ मुझे भूखा रखा जाता है|
क्यूँ मेरे हक में एक भी हिन्दू, आवाज नहीं ऊठाता है|
जितने मुस्लिम है धरती पे,सब खुश होके मुझे खाते हैं|
जब हिन्दू के काम की न रहती मैं,तब हत्थे में बेच आते हैं|

Thursday 21 August 2014

खोल गया था खून जब सुनी सम्राट
की कहानी थी,
अफगानिस्तान में उन्हें अब
लिखनी नयी कहानी थी।
जोर इतना था किसमें जो इस
राणा को रोक पाता,
तोङ जंजीर तिहाङ
की वो जा अफगानिस्तान भागा।
अब ले आया था वो सम्मान पुराना,
देश को हैं ये पैगाम सुनाना।
क्या हैं देखा किसीने ऐसा कैदी,
वापस आकर जिसने खुद बेङी लेली।
पर स्वतंत्र भारत मे कैसा हुआ ये न्याय,
इस राणा पर हीं आज कर दिया अन्याय।
बोल गया था उस क्षण शेर का रक्त,
जब सुने थे उसने फूलन के शब्द।
क्या किया गुनाह जब फूलन को मारा,
कम से कम बेगुनाहों को तो पार लगाया।
आज जान लो है अब क्या होने वाला,
हर बेगुनाह इस देश में अब हैं कटने वाला।
भोग रहा है जो सजा वो नहीं कोई आम,
कुछ समय में अब होने वाला सबका काम तमाम।
हो जायें प्रलय चाहें आंधी और तूफान,
अब नहीं रुकेगा चल पङा जो नया सैलाब।
खुशकिस्मत थे वो क्रांतिकारी भगतसिंह
जिनके साथ थे,
नागवार हम भी नहीं शेरसिंह के राज में।
फैला दो ये समाचार अब होंगे नहीं हम हलाल,
मर जायेंगे देश पर मगर नहीं करेंगे मलाल।

Monday 4 August 2014


बिन हाथ लगाया दरद जाणग्या
परची मोटी करी तय्यार
जाँच कराई बार लेब सूँ
रपट पढी ना एक भी बार
सात-आठ एक गोळ्याँ लिख दी
पीवण री शीश्याँ दी चार
ठीक हुयो तो महिमा थाँरी
मरग्यो तो मालिक री मार
अजब लगावो मजमो थाँरी धुर्र बोलूँ
थाँने डाकटर बतळाऊँ या मदारी बोलूँ