शेर की दहाड़ हूँ
वक्त की पुकार हूँ
शिव का त्रिशूल हूँ
खुद का उसूल हूँ
भारत माँ का सपूत हूँ
मैं राजपूत हूँ
राज बदल दुँगा तेरा,
मै ताज बदल दुँगा|
नजर मिलाई मुझसे तो,,
पहचान बदल दुँगा|
तन मै दौडता,
रक्त मेरे राजपुत पुरवजो का,, अपनी हैसियत समझ ले,,
वरना तेरी औकात बदल दुँगा||
"दुश्मनों' की कभी सुबह शाम ना होने देगे"....
"राजपुताना " की कुरबानी कभी बदनाम
ना होने देगे".....
होगी " लहू" की एक बूंद
भी रगों में"...!!
तब तक "राजपुताना " का आंचल कभी नीलाम
ना होने देगे"....!!!!
मिट गये मिटाने वाले,
ना सका कोई मिटा ।
झुक गये झुकाने वाले,
ना सका कोई झुका ।।
.
सर कटाने को रहे सदा त्यार
पर कभी, सर झुकाया नहीं ।
महलों को त्याग भटके जंगल,
पर स्वाभिमान डगमगाया नहीं ।।
शेर कभी छुप कर शिकार नहीं करते ,
बुजदिल कभी खुलकर वार नहीं करते,
अरे हम तो राजपूत हैं राजपूत ,
और राजपूत कभी मरके भी हार
स्वीकार नहीं करते !!
जूलम कि पहचान मिटा के रख दे
राजपूत चाहेतो कोहराम मचा के रख दे
राजपूतअभी सुखे पत्तो कि तरह बिखरे है !
हम राजपूत अगर हो जाए एक तो दुनिया हिला दे
किसने कह दिया की राजपुत एक हो नही सकते ।
हाँ ये सही है की बँजङ खेत के अन्दर बीज बो नही सकते।
झाङीयो को काट के खेत को सुधारा जाता है।
कोई भी हो सँकट मे तो क्षत्रीयो को पुकारा जाता है।
हो सकता है शेर गहरी नीँद मे सो गया है।
थोङे समय के लिये क्षत्रीय भी कहीँ खौ गया है।
अब हमे वो हूँकार भरनी है जो महाराणा ने भरी थी।
एक बार वो तलवार उठानी है जिससे हल्दीघाटी मे लाखो लाशे गिरी थी।
जीनके दिल कमजोर है वो हमसे परे जाओ।
बचे हुए सब क्षत्रीय धर्म मे खरे हो जाओ।
हमे तो बस क्षत्रिय धर्म और सँस्कार को अपनाना है।
राजपूत कंगाल होकर भी राजा कहलाएगा ,
जो पैदा हुआ है इस कौम मे कभी न सर झुकाएगा
वार पीठ पर करना नहीं है राजपुती शान
भले ही यारो चले जाए राजपूत के प्राण
मेरा कत्ल कर दो,कोई शिकवा न होगा,
मुझे धोखा दे दो,कोई बदला न होगा,
पर उठी जो आँख मेरे ' धर्म ' पर,
तो उठेंगी तलवारे,और कोई समझौता न होगा...
अपने आप को ठाकुर कहते हो तो,जीवन मे ठकुराई रखो।
तलवार नही रखते अब हाथ मे, तो जीवन मे रजपुताई तो रखो॥
स्वार्थी हे ये दुनिया कुछ तो ईससे सिखो ।
राजपुत लिखते थे भविष्य दुनिया का
कम से कम खुद का तो अब भी लिखो॥
वक्त की पुकार हूँ
शिव का त्रिशूल हूँ
खुद का उसूल हूँ
भारत माँ का सपूत हूँ
मैं राजपूत हूँ
राज बदल दुँगा तेरा,
मै ताज बदल दुँगा|
नजर मिलाई मुझसे तो,,
पहचान बदल दुँगा|
तन मै दौडता,
रक्त मेरे राजपुत पुरवजो का,, अपनी हैसियत समझ ले,,
वरना तेरी औकात बदल दुँगा||
"दुश्मनों' की कभी सुबह शाम ना होने देगे"....
"राजपुताना " की कुरबानी कभी बदनाम
ना होने देगे".....
होगी " लहू" की एक बूंद
भी रगों में"...!!
तब तक "राजपुताना " का आंचल कभी नीलाम
ना होने देगे"....!!!!
मिट गये मिटाने वाले,
ना सका कोई मिटा ।
झुक गये झुकाने वाले,
ना सका कोई झुका ।।
.
सर कटाने को रहे सदा त्यार
पर कभी, सर झुकाया नहीं ।
महलों को त्याग भटके जंगल,
पर स्वाभिमान डगमगाया नहीं ।।
शेर कभी छुप कर शिकार नहीं करते ,
बुजदिल कभी खुलकर वार नहीं करते,
अरे हम तो राजपूत हैं राजपूत ,
और राजपूत कभी मरके भी हार
स्वीकार नहीं करते !!
जूलम कि पहचान मिटा के रख दे
राजपूत चाहेतो कोहराम मचा के रख दे
राजपूतअभी सुखे पत्तो कि तरह बिखरे है !
हम राजपूत अगर हो जाए एक तो दुनिया हिला दे
किसने कह दिया की राजपुत एक हो नही सकते ।
हाँ ये सही है की बँजङ खेत के अन्दर बीज बो नही सकते।
झाङीयो को काट के खेत को सुधारा जाता है।
कोई भी हो सँकट मे तो क्षत्रीयो को पुकारा जाता है।
हो सकता है शेर गहरी नीँद मे सो गया है।
थोङे समय के लिये क्षत्रीय भी कहीँ खौ गया है।
अब हमे वो हूँकार भरनी है जो महाराणा ने भरी थी।
एक बार वो तलवार उठानी है जिससे हल्दीघाटी मे लाखो लाशे गिरी थी।
जीनके दिल कमजोर है वो हमसे परे जाओ।
बचे हुए सब क्षत्रीय धर्म मे खरे हो जाओ।
हमे तो बस क्षत्रिय धर्म और सँस्कार को अपनाना है।
राजपूत कंगाल होकर भी राजा कहलाएगा ,
जो पैदा हुआ है इस कौम मे कभी न सर झुकाएगा
वार पीठ पर करना नहीं है राजपुती शान
भले ही यारो चले जाए राजपूत के प्राण
मेरा कत्ल कर दो,कोई शिकवा न होगा,
मुझे धोखा दे दो,कोई बदला न होगा,
पर उठी जो आँख मेरे ' धर्म ' पर,
तो उठेंगी तलवारे,और कोई समझौता न होगा...
अपने आप को ठाकुर कहते हो तो,जीवन मे ठकुराई रखो।
तलवार नही रखते अब हाथ मे, तो जीवन मे रजपुताई तो रखो॥
स्वार्थी हे ये दुनिया कुछ तो ईससे सिखो ।
राजपुत लिखते थे भविष्य दुनिया का
कम से कम खुद का तो अब भी लिखो॥